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________________ ४२९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरं मिथ्यादृष्टयादिगुणस्थानगळोळुदयव्युच्छित्तिप्रकृतिगळं पक्षांतरोतक्रममनंगीकरिसि पेन्दपर : दसचउरिगि सत्तरसं अट्ठय तह पंच चेव चउरो य । छच्छक्कएक्कदुगदुर्ग चोदस उगुतीस तेरसुदयविही ॥२६३॥ वश चतुरेक सप्तदशाष्ट च तथा पंच चैव चत्वारः। षट् षडेक द्विद्वि चतुर्दशैकान्नत्रिंशत्रयो- ५ दशोदयविधिः॥ अभेदविवक्षेयिनुदय प्रकृतिगळ नूरिप्पत्तरड १२२ प्पुववरोळु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळु वश पत्तु १० चतुः सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळु नाल्कु ४ । मिश्रगुणस्थानदोळु एक ओंदु १ । असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानदोळु सप्तदश पदिनेछु १७ । देशसंयतगुणस्थानदोळ अष्ट च एंटु ८। प्रमत्तगुणस्थानदोळ पंच अय्दु ५। अप्रमत्तगुणस्थानदोळु चत्वारः नाल्कु ४। अपूर्वकरणस्थान- १० वोळु षट् आरु ६। अनिवृतिकरणगुणस्थानदोळ एक ओंदु १। उपशांतकषायगुणस्थानदोळु द्वि एरडु २। क्षीणकषायगुणस्थानदो द्वि चतुर्दश एरडुं २ । पदिनाल्कु १४ । सयोगि केवलियोळु अथ गुणस्थानेषु व्युच्छित्ति पक्षांतरक्रमेणाह अभेदविवक्षया उदयप्रकृतिषु द्वाविंशत्युत्तरशते उदयविधिः उदयव्युच्छित्तिः उक्तगुणस्थानादुपर्युदयाभावः । स मिथ्यादृष्टी दश । सासादने चतस्रः । अस्मिन् पक्षे एकेंद्रियस्थावरद्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिंद्रियनामकर्मणां १५ मिथ्यादृष्टावेव उदयच्छेदकथनात् । मिश्रे एका, असंयते सप्तदश, देशसंयतेऽष्टौ, प्रमत्ते पंच, अप्रमत्ते चतस्रः, अपूर्वकरणे षट्, अनिवृत्तिकरणे षट्,, सूक्ष्मसापराये एका, उपशांतकषाये हे, क्षीणकषाये द्वे चतुर्दश च, उदयका अभाव जानना। तथा जिस गुणस्थानमें जितनी प्रकृतियोंका उदय और जितनी प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति कही हो उस गुणस्थानकी उदय प्रकृतियों में-से उसी गुणस्थानमें व्युच्छिन्न हुई प्रकृतियोंका प्रमाण जानना। इसमें इतना विशेष है कि यदि कोई प्रकृति २० ऊपरके गणस्थानमें उदयमें आनेवाली है और विवक्षित गुणस्थानमें उसका उदय नहीं है तो उसे उदयमें-से घटा देना चाहिए। और यदि पहले गणस्थानमें जिसका उदय न था और विवक्षित गुणस्थानमें उसका उदय हो तो उसे उदय में मिला देना चाहिए । यह तो हुई उदयकी बात । जितनी प्रकृतियोंका मूलमें उदय कहा हो उनमें-से विवक्षित गुणस्थानमें जितनी प्रकृतियोंका उदय कहा हो, उनसे शेष जो प्रकृति रहें उनका उस विवक्षित गुणस्थानमें २५ अनुदय जानना इस प्रकार व्युच्छित्ति, उदय और अनुदयका स्वरूप जानना ॥२६२॥ आगे गुणस्थानोंमें व्युच्छित्ति पक्षान्तर अर्थात् यतिवृषभाचार्यके मतानुसार कहते हैं अभेद विवक्षासे उदय प्रकृतियाँ एक सौ बाईस हैं। उनके उदयकी अवधिको उदयव्युच्छित्ति कहते हैं । अर्थात् जिस गुणस्थानमें जितनी प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति कही है, उनका उदय उसी गुणस्थान पर्यन्त होता है उससे ऊपर उनका उदय नहीं होता। ___ सो मिथ्यादृष्टि में दसकी और सासादनमें चारकी व्युच्छिति जानना। क्योंकि इनके मतानुसार एकेन्द्रिय, स्थावर, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, और चौइन्द्रिय नामकर्मकी उदयव्युच्छित्ति मिथ्यादृष्टि में कही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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