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________________ ४२८ गो० कर्मकाण्डे वेदकसम्यग्दृष्टौ वेदकसम्यग्दृष्टियोळु, वेदकसम्यग्दृष्टिसामान्यग्रहणदिदमसंयतादि नाल्कु गुण. स्थानंगळगे ग्रहणमक्कुं । सम्यक्त्वसहचरितत्वदिदं । सम्यक्त्वप्रकृतिगं सम्यक्त्वव्यपदेशमयकुमदु कारणमागि असंयतादिनाल्कं गणस्थानदोळे सम्यक्त्वप्रकृत्युदतमकुं। मिथ्यादृग्यासंयतेष्वेव मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यग्दृष्टि असंयतसम्यग्दृष्टि यब मूलं गुण५ स्थानंगळोळे आनुपूर्योदयः आनुपूर्व्यनामकर्मोदयमकुमी प्रकृतिगळ्गी गुणस्थानंगळोळल्लन्यत्र गुणस्थानांतरंगळोळुदयमिल्ले बो नियममरियल्पडुगु-। __ मनंतरं मिथ्यादृष्टिसासादनसम्यादृष्टयसंयतसम्यग्दृष्टिगळे बो मूलं गुणस्थानंगळोळे आनुपूर्योदयमेंब नियममप्पुरिदं सासादनसम्यग्दृष्टियोळु नारकानुपूाद्यानुपूर्व्य चतुष्कोदयप्रसंगमादोडे विशेषमं सासादनंगे पेळ्दपरु : णिरयं सासाणसम्मो ण गच्छदित्ति य ण तस्स णिरयाणू । मिच्छादिसु सेसुदओ सगसगचरिमोत्ति णायव्यो ॥२६२॥ नरकं सासादनसम्यग्दृष्टिन्न गच्छतीति च न तस्य नारकानुपूव्यं । मिथ्यादृष्टयादिषु शेषोदयः स्वस्वचरमपर्यन्तं ज्ञातव्यः॥ नरकं नरकगतियं सासादनसम्बग्दृष्टिः सासादनसम्यग्दृष्टिजीवं न गच्छतीति च पुगर्ने दितु १५ न तस्य नरकानुपूठव्यं सासावननोळानरकानुपूर्व्यनामकर्मोदयमिल्लमदक्के नियममो सूत्रमयक्कु मुळिदंतल्ला प्रकृतिगळ्गुदयं मिथ्यादृष्टयादिचतुर्दशगुणस्थानंगळोळु स्वस्वचरमपय्यंतं तंतम्मुदयगुणस्थानंगळ चरमपर्यन्तं ज्ञातव्यः ज्ञातव्यमक्कुं॥ संयते एव । तीर्थोदयः केवलिन्येव । मिश्रप्रकृत्युदयः सम्यग्मिथ्यादृष्टावेव । सम्यक्त्वप्रकृत्युदयः वेदकसम्यग्दृष्टा२० वेव असंयतादिचतुर्गुणस्थानेषु । आनुपूर्योदयः मिथ्यादृष्टिसासादनासंयतेष्वेव अन्यत्र तेषामुदयाभावात् ॥२६१॥ आनुपूर्योदयं पुनर्विशेषयति ___ नरकगति सासादनसम्यग्दृष्टिनं गच्छति इति हेतोः तस्य सासादनस्य नारकानुपूर्योदयो नास्ति । शेषसर्वप्रकृत्युदयः मिथ्यादृष्टयादिगुणस्थानेषु स्वस्वोदयस्थाने चरमसमयपर्यंत ज्ञातव्यं ।। २६२ ॥ तीर्थकर प्रकृतिका उदय सयोगकेवली और अयोगकेवलीके ही होता है। मिश्र मोहनीयका २५ उदय सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें ही होता है । सम्यक्त्व मोहनीयका उदय असंयत आदि चार गुणस्थानोंमें वेदक सम्यग्दृष्टीके ही होता है। आनुपूर्वीका उदय मिथ्यादृष्टि, सासादन और असंयत गुणस्थानों में ही होता है अन्य गुणस्थानों में इनका उदय नहीं होता ॥२६१॥ आनुपूर्वीके उदयके विषयमें विशेष नियम कहते हैं सासादन सम्यग्दृष्टि मरकर नरकगतिको नहीं जाता, इस कारणसे सासादन सम्य३० ग्दृष्टि के नरकानुपूर्वीका उदय नहीं होता। शेष सब प्रकृतियोंका उदय मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में अपने-अपने उदय स्थानके अन्तिम समय पर्यन्त जानना चाहिए ।।२६२॥ विशेषार्थ-इस उदय प्रकरणमें भी व्युच्छित्ति, उदय, अनुदय तीन प्रकारसे कथन किया है। जिस गुणस्थानमें जितनी प्रकृतियोंकी व्युच्छित्ति कही हो उन प्रकृतियोंका उस गुणस्थानके अन्त तक उदय जानना और उससे ऊपरके गुणस्थानोंमें उनका अनुदय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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