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________________ ४२७ कोटवृत्ति जोवतत्त्वदापका यल्पडुववेंदु पेलल्पटुदु । यि प्रदेशबंध सोगमागि पेल्पटुरनंतरं चतुविधबंधमं पे प्रकृत्युदयप्रकरणमं पेळलुपत निसि प्रथमदोजु गुगुणास्थानदो पेळल्बेडि बोलवुप्रतिगगे उदयनियमगुणस्थानंगळं पेपरु :-- आहारं तु पमत्ते तित्थं केवलिणि मिस्सयं मिस्से । सम्मं वेदगसम्मे मिच्छदुगदेव आणुदओ ।।२६१॥ आहारस्तु प्रमते तीत्थं केवलिनि मिश्रकं मिश्रे। सम्यक्तं वेदकसम्यग्दृष्टौ मिथ्यादृग्वयासंयतेम्वेवानुपूयोदयः॥ तु प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशभेदभिन्नचतुविधबंधस्वरूपनिरूपणानंतरं मत्त प्रमत्ते प्रमत्तसंयतनो आहारः आहारकशरीरतदंगोपांगतामकर्मद्वयोदयमक्कुं। केवलिनि केलिगकोळे तीर्थ तीर्थकरनामकम्ोदयमक्कुं । मिश्रे सम्यग्मिथ्यादृष्टियोळे मिश्र मिश्रकर्मोदयनक। १० प्रबद्ध मात्राः स । १२ - सर्वस्थित्यनुभागबंधाध्यवसायस्थानेभ्योऽनंतगुणा इति ज्ञातव्यं ॥ २६० ॥ एवं प्रदेशबंध प्ररूप्य इदानीमुदयप्रकरणमुपक्रमते तु पुनः च विधबंधनिरूपणानंतरं गुणस्थानेषु उदयनियममाह-आहारकशरीरतदंगोपांगोदयः प्रमत्त जिस समयप्रवद्धका बन्ध हुए आबाधाकाल पूरा होकर एक समय हुआ हो और जिसका एक निपेक पहले तिर गया हो उसका चार सौ अस्सी रूप दूसरा निपेक वर्तमान १५ समय में उदयमें आता है। शेष छियालीस निषेक आगामी समयोंमें क्रमसे उदय में आवंगे। जिस समयप्रवद्धका बन्ध हुए आबाधा काल और दो समय हुए हों तथा दो निषेक पूर्व में खिर चुके हों उसका चार सौ अड़तालीस रूप तीसरा निषेक बर्तमान समय में खिरता है। शेष पैंतालीस निषेक आगामीमें क्रमसे खिरेंगे। इसी तरह क्रमानुसार जिस-जिस समयप्रवद्धका बन्ध पहले-पहले हआ है उसका पिछला-पिछला निषेक वतमान कालमें उदय आता २० है। शेष निषेक आगामी समयों में क्रमसे उदयमें आते हैं। अन्त में जिस समयप्रबद्धका बन्ध हुए. आवाधाकाल और सैंतालीस समय हुए हों तथा जिसके सैंतालीस निषेक पूर्व में उदयमें आ चुके हों उसका अन्तिम निषेक नौ वर्तमानमें उदयमें आता है। उसका कोई निषेक शेष नहीं रहा। उससे पहले जो समयप्रबद्ध बँधे थे उनके सर्वनिषेक इसी क्रमसे पूर्वमें खिर चुके । अतः उनसे कोई प्रयोजन नहीं रहा। इस प्रकार वर्तमान विवक्षित एक २५ समयमें पाँच सौ बारह से लेकर नौ तक सब निषेक एक समय में उद यमें आते हैं। ये सब मिलकर एक समयप्रबद्ध होता है। इस प्रकार एक-एक समय में समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणु खिरते हैं और एक समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणु नवीन बँधते हैं। तथा किंचित् न्यून डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध सत्तामें रहते हैं। जैले अंकसंदृष्टि द्वारा कथन किया है वैसे ही अर्थसंदृष्टि द्वारा जानना। इसीसे अनुभागबन्धाध्यवसायस्थानोंसे कर्म परमाणु अनन्तगुणे ३० कहे हैं ।।२६० । प्रदेशबन्धके साथ बन्धका निरूपण समाप्त होता है। आगे उदयका निरूपण करते हैंचार प्रकार बन्धका कथन करने के अनन्तर गुणस्थानोंमें उदयका नियम कहते हैंआहारक शरीर और आहारक अंगोपांगका उदय प्रमत्त गुणस्थानमें ही होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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