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रूपदमितुटक्कु प१ । छे व छे
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मक्कु । व १ | मिदरोळु किंचिदूनं माडि । व 2-1 प्रथमधन मिरोळ स।८।४ गुणहान्यादशैकभागमं ऋणमनिक्कि स२।८।९ अपर्वात्तसि गुणहान्यर्द्धमं तंदु उत्तरधनदोलेकगुणहानियो कूडुतं विरलु यर्द्धगुणहानिमात्रसमय प्रबद्धंगळप्पुववरोल किचिडूनपल्या संख्यातवर्ग'लाकाराशियं साधिकं माजिद गुणहान्यष्टादशैकभागमात्रद्वितीयऋणदोळ साधिकं माडि स ० ८१
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किचिदूनमं माडिदोडे जीवप्रदेशं गळु सर्व्वदा सत्वरूपदिनिद्द कर्म्मप्रदेशंगळु किंचिदून द्वयगुणज्ञानिमात्रसमयप्रबद्ध गळ सर्व्वंस्थित्यनुभागबंधाव्यवसायस्थानंगळं नोडलुमनंतगुणितंगळे वरि
८ । ३२७
गो० कर्मकाण्डे
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स Đ । ४ एकरूपासं ख्यातैकभागेन स । १ साधिकीकृत्य स १ ऋणेऽस्मिन् स ६ वस्तुत
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छे व छे । प
अपवत्तसिदोडे संख्यातपल्य वर्गाशिलाका प्रमित
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छे व छे प
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ईदृशे स प १ अपवर्तिते संख्यातं वर्गशलाकामात्रे स व अपनयेत् स । १ । प्रथमधने स८४
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छे व छे गुणान्यष्टादर्शक भागं स । ८ । १ ऋणं निक्षिप्य स । ८ । ९ अपवर्त्य उत्तरषने एकगुणहानौ निक्षिप्ते १८ द्वय गुणहानिमात्र समयबद्धाः स्युः । एते किंचिदूनपत्यसंख्यात वर्गशलाकाधिक गुणहान्यष्टादर्शक भागद्वितीयऋणेन
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८१ किंचिदूनिता एकजीव प्रदेशेषु सर्वदा सत्त्वस्थितकर्मप्रदेशाः किंचिन्न्यूनद्वय र्ध गुणहानि गुणितसमय
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इस प्रकार किंचित् न्यून डेढ़ गुणहानिसे गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण कर्मोंकी सत्ता जीव सदा पायी जाती है । सो गुगहानि आयाम के समयोंके प्रमाणको ड्योढ़ा करके उसमें१५ से पल्यकी संख्यात वर्गशलाका प्रमाण अधिक गुणहानि आयामका अठारहवाँ भाग घटाकर
जो शेष रहे उससे समयबद्धको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने कर्म परमाणु जीवके सदा रहते हैं । इसीसे सब स्थिति सम्बन्धी अनुभागबन्धाध्यवसायस्थानोंसे कर्म प्रदेश अनन्तगुणे हैं ।
जैसे प्रतिसमय एक समयप्रबद्ध बँधता है । उसी प्रकार एक समयप्रबद्ध प्रतिसमय २० उदयरूप होकर खिरता है, सो एक समय में एक समयप्रबद्धका खिरना कैसे होता है, यह कहते हैं
वर्तमान विवक्षित समय में जिस समय प्रबद्धका बन्ध हुए आबाधा काल ही पूरा हुआ हो और एक भी निषेक न खिरा हो उसका तो पाँच सौ बारह रूप प्रथम उदय होता है । शेष निषेक आगामी समयों में क्रमसे उदयमें आवेंगे ।
निषेकका ही
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