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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
४२५ तामिवरोळ, स०५८॥ १४ द्वितीयद्विकमनिद स ० । २ नोभत्तरिद केळ्गेयु मेगेयुं गुणिसि३ ३।३
३।३ यदरोळु पदिनाल्कुरूपुगळं को कूडुत्तं विरलु इनितक्कु स ।। ८१३ । १४ मिदनपत्तिसिदोडिदु ।
८।३ २१ स ३ । १४ मतं पविनाल्कु रूपं कळंदुळिद ८३ । ३।३। शेषमिदु स ० ४ यिदनेकरूपा.
गु३ २१ संख्येयभागमं । । । तंदु भागहारोळेकरूपहोनत्वमनवगणिसि पदिनाल्कुरूपुगळनिष्पत्ते-रोळप. ५ वत्तिसिदोडेकरूपार्द्धमक्कु । २ मिदरोळु साधिकम माडि २ दिदं। ऋणमिदु ८॥६ व तु.
२१
स०८।८।४ त्रिभिः समच्छिन्ने स।८।८।३। ४ निक्षिप्य स८।८।३। ४ अपतिते एवं
८।३। ३
८३।३।
३ १ - ८३ । ३ । ३ स।८।४ शेषमिदं स०८।२ उपरितनपार्श्वे स०८४ निक्षिप्तं तदिदं स ० ८१४ द्वितीयद्विकात्
३।३
८३३
८३३३
स . २ उपर्यधो नवगुणितात् स ० १८ तद्गृहीतचतुर्दशरूपैर्युतं स ।। ८ । ३ । १४ अपवर्तितं स । १४
२७
८।३।३ ८।३।४।९
८ ३ २७ पुनर्भागहारे एकरूपहीनत्वमवगणय्य चतुर्दशभिरपवर्तितमेकरूपाधं स्यात् स ।। १ इदं चतुर्दशरूपापनीतशेषेण १० नौ और दस है उसका जोड़ उन्नीस है। उसमें ग्यारह जोड़नेपर तीसरी पंक्तिका जोड़ तीस होता है। उसमें बारह जोड़नेपर चौथी पंक्तिका जोड़ बयालीस होता है। इस तरह पूर्वपूर्वकी पंक्तिके जोड़में आगे-आगेका एक-एक निषेक जोड़नेसे आगे-आगेकी पंक्तिका जोड़ आता जाता है। अन्तिम पंक्तिमें सब अड़तालीस निषेक होनेसे उसका जोड़ सठ सौ है।
इन सब पंक्तियोंके जोड़ोंको जोड़नेपर त्रिकोण रचनाका जोड़ होता है। यह जोड़ १५ इकहत्तर हजार तीन सौ चार ७१३०४ होता है। सो यह सब जोड़ किंचित् न्यून डेढ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण जानना। गुणहानि आयामका प्रमाण आठ है। उसको ड्योढ़ा करनेपर बारह हुए। उसे त्रेसठ सौसे गुणा करनेपर पचहत्तर हजार छह सौ हुए। किन्तु यहाँ इकहत्तर हजार तीन सौ चार ही है। इससे गुणकारमें किंचित् न्यून कहा है।
__ जैसे अंक सदृष्टिमें कहा है वैसे ही अर्थ संदृष्टि द्वारा भी जानना। कन्नड़ तथा २० तदनुसारी संस्कृत टीकामें अर्थसंदृष्टि और अंकसंदृष्टि द्वारा जोड़नेका विधान विस्तारसे कहा है। उससे समझ लेना चाहिए ।
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