________________
a
a
गो० कर्मकाण्डे दल्लिगेनितु द्रव्यविकल्पंगळापुर्वेदितु त्रैराशिकमं माडुत्तं विरलु प्र। १ वृ। फ। २। इ ३ ६ व लब्धं देशावधिज्ञानविषयद्रव्यविकल्पंगळ प्रमाणमक्कुमा द्रव्यविकल्पंगळे नितनित देशावधिज्ञानविकल्पंगळप्पुवु = ६ । २ परमावधिज्ञानविकल्पंगळु परमावहिस्सभेदासगओगाहणवियप्पहदतेऊ
यदितु तेजस्कायिक जीवावगाहनविकल्पंगळिदं गुणिसल्पटु तत्तेजस्कायिकजीवराशिप्रमाणमक्कु ५ = ०६० सर्वावधिज्ञानं निविकल्पकमप्प क्षायोपशमिकज्ञानमप्पुरिदमेकविधयक्कु १ । सर्वावधिदेशावधिज्ञानविकल्पंगळं परमावधिज्ञानविकल्पंगळोळु साधिकम माडिदोडे मतिज्ञानविकल्पंगळं नोडलुमसंख्यातगुणहीनमकुं। = तावन्मानंगळे तदारणोत्तरोत्तरप्रकृतिगळप्पुवु । मनःपर्ययज्ञानविकल्पंगळुमसंख्यातकल्पप्रमितंगळप्पुवु । क । तावन्मानंगळे तदावरणोत्तरोत्तरप्रकृतिगळप्पु । केवलज्ञानं क्षायिकनिम्विकल्पकज्ञानमप्पुरिदं तदावरणमुमेकविधमेयक्कुं। केवल. ज्ञानावरणमनःपर्ययज्ञानावरणावधिज्ञानावरणोत्तरोत्तर प्रकृतिगळं तंदु श्र तज्ञानावरणोत्तरोत्तरप्रकृतिगोळु साधिक माडि मतिज्ञानावरणोत्तरोत्तरप्रकृतिगळोळ कूडिदोडे साधिकद्विगुणमक्कु =a = a २ मप्पुरिदं । सर्वप्रकृतिगळं नामप्रत्ययंगळप्पुरिवं पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्यो.
गुलासंख्येयभागगुणिते सैके सति यत्प्रमाणं ताति- = ६।२ परमावष्यावरणानि स्वावगाहविकल्पहततेजस्का
aa
यिकराशिमात्राणि =६० सर्वावध्यावरणमेकं । मनःपर्ययज्ञानावरणान्यसंख्यातकल्पमात्राणि । क
१५ केवलज्ञानावरणमेकं १ मिलित्वा सर्वज्ञानावरणानि अवधिमनःपर्ययकेवलज्ञानावरणाधिकश्रुतावरणयुतमत्यावरणके भेद हैं।
अवधिज्ञानावरणमें, घनांगुलके असंख्यातवें भागसे हीन लोकको सूच्यंगुलके असंख्यातवे भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उसमें एक मिलानेपर देशावधिके भेद होते
हैं अतः देशावधि अवधिज्ञानावरणके भेद भी इतने ही हैं। अग्निकायके जीवोंके प्रमाणको २० उनकी शरीरके अवगाहनाके भेदोंसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने परमावधिके भेद
हैं। अतः परमावधिज्ञानावरणके भी इतने ही भेद हैं। सर्वाधिका एक ही भेद है अतः सर्वावधिज्ञानावरणका भी एक ही भेद है। बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण कल्पकालको असंख्यातसे गुणा करनेपर मनःपर्ययज्ञानके भेद होते हैं। अतः मनःपययज्ञानावरणके भी
इतने ही भेद हैं। केवलज्ञानावरण एक होनेसे केवलज्ञानावरण भी एक है। ये सब २५ मिलकर अवधिज्ञानावरण मनःपर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण तथा श्रुतज्ञानावरण
सहित मतिज्ञानावरण, प्रमाण ज्ञानावरणकी उत्तरोत्तर प्रकृतियोंके भेद होते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org