SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 441
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरमी निरंतरस्थानविकलांगळे नितक्कुमेंदोडे ऐळदपरु : आदी अंतेसुद्धे वहिदे रुवसंजुदे ठाणा | सेठ असंखेज्जदिमा जोगट्ठाणा निरंतरगा || २५४॥ आदावन्ते शुद्धेवृद्धिहृते रूपसंयुते स्थानानि । श्रेण्यसंख्येयानि योगस्थानानि निरंतराणि ॥ आदियप्प जघन्यस्थानमनन्त स्थानदोलु कळेयल्पडुत्तं विरलु शेषममल्लिगे पच्चिद पेर्चु- ५ गेय प्रमाणमक्कु १६ । ४ a - "" छे प्रमाणराशिभूतवृद्धिप्रमार्णादिदं भागिसुत्तं विरलु लब्धं सर्वाधिस्थान संख्येयक्कु a a 0 6 छे मदं त्रैराशिक विधानदिदं । प्र व वि १६ । ४ । २ । फ स्था १ | इववि a a मदरो जघन्यस्थानमं कूडुत्तं विरल समस्तनिरंतरयोगस्थानंगळ प्रमाणमिनितक्कु छे a al Ra a ← ज् २. । २ Jain Education International -२२० ०० ३९१ -२२२ მ ० a स २ । २ - a a स २२|००० स २२२ ० ००छे०००० -छे a a २ aa ।। २५३ ॥ ते स्थानविकल्पाः कति ? इति चेदाह - आदौ जघन्यस्थाने व वि १६४ - । अंते उत्कृष्टस्थाने व वि १६४ - छे शुद्धे शोधिते सति शेषे १० a aa ००० स छे ०००० स छे a २ a ववि १६४ - छे सूच्यंगुला संख्येभागजघन्य स्पर्धकवृद्धया भवते सवृद्धिकस्थानानि । अत्र जघन्यस्थाने निक्षिप्ते aa है । अर्थात् जघन्य योगस्थानके अविभाग प्रतिच्छेदोंके प्रमाणको पल्य के अर्धच्छेदों के असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने सर्वोत्कृष्ट योगस्थानके अविभाग प्रतिच्छेद होते हैं || २५३॥ समस्त निरन्तर योगस्थानोंका प्रमाण कहते हैं आदि जघन्य स्थानको अन्त उत्कृष्ट स्थानमेंसे घटाइए । अर्थात् अन्तके उत्कृष्ट स्थानके जितने अविभाग प्रतिच्छेद हैं उनमें से जघन्य स्थानके अविभाग प्रतिच्छेदों को घटानेपर जो प्रमाण आवे उसे वृद्धिसे भाग दें । सो एक-एक स्थान में सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग For Private & Personal Use Only १५ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy