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________________ ३९२ गो० कर्मकाण्डे मिवु श्रेण्यासंख्यातेकभागप्रमितंगळेयप्पुवु ॥ अनंतरमंतरगतस्थानंगळे नितक्कुमेंदोडे पेळ्दपरु : अंतरगा तदसंखेज्जदिमा सेढियसंखभागा हु। सांतरणिरंतराणि वि सव्वाणि वि जोगठाणाणि ।।२५५।। अन्तरगतानि तदसंख्यातेकभागप्रमितानि खलु । सांतरनिरंतराण्यपि सण्यिपि योग. स्थानानि ॥ अंतरगतयोगस्थानंगळु निरंतरयोगस्थानंगळ असंख्यातेकभागमात्रंगळप्पुर्व - छे तादोर्ड aara श्रेण्यसंख्यातक भागप्रमितंगळेयक्कुं। सान्तरनिरंतराण्यपि.सांतरनिरंतरस्थानंगळु तदसंखेज्जविमा अंतरगतस्थानविकल्पंगळ असंख्यातेकभागमक्कु _छे .. मादोडमवू श्रेण्यसंख्यातकभाग a alala १. मात्रंगळेयक्कुं। सर्वाण्यपि योगस्थानानि ई निरंतर सान्तर सांतरनिरंतरंगळेब त्रिविधयोग समस्तनिरंतरयोगस्थानानि -२ छे एतानि श्रेण्यसंख्यातकभागमात्राण्येव - ॥२५४॥ a aa अंतरगतयोगस्थानानि निरंतरयोगस्थानानामसंख्यातकभागोऽपि -२ छ श्रेण्यसंख्यातकभाग एव । aaaa श्रेण्यसंख्यातकभाग एव । तानि त्रिवि सांतरनिरंतराण्यपि अंतरगतानामसंख्यातकभागोऽपि - aaaa wwwww स्पर्धकोंके जितने अविभाग प्रतिच्छेद हों उतनी वृद्धि होती है उससे भाग दें। जो प्रमाण १५ आवे उतनी वृद्धि सहित स्थान जानना। उनमें एक जघन्य योगस्थान मिलानेपर जो प्रमाण हो, उतने सर्व निरन्तर योगस्थान होते हैं । वे स्थान जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग हैं ॥२५४॥ ___ अन्तरगत योगस्थान निरन्तर योगस्थानोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण होनेपर भी जगतश्रेणिके असंख्यात माग ही हैं। सान्तर निरन्तर मिश्ररूप योगस्थान अन्तरगत योग स्थानोंके असंख्यातवें भाग हैं। फिर भी वे जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग हैं। निरन्तर, २० सान्तर और निरन्तरसान्तर ये तीनों योगस्थान मिलकर भी जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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