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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका स्थानंगलिल्लिगे स्थिति येंबुदक्कुमेकें दोडे जवन्यस्थानं मोदगों डुत्कृष्टस्थानपर्यन्तमागि परिणामयोगसमस्त स्थान विकल्पंगळोळे कैकस्थानं प्रति स्वामित्वददं द्वींद्रियादिपर्याप्तत्रस राशि पसल्पडुगुमप्पुर्दारदं छेदासंख्यस्य पल्यच्छेदा संख्यातैकभागद । छे । असंख्यबहुभागे यथायोग्य a मप्प असंख्यार्ताददं खंडिसिद बहुभागेयोल छे दळं अर्धमुं a a येक भागमुं छे ? बहुभागादुर्धमुं छे a a रूव संजुदे a २३१ a बहुभागान् छे a a a a २ यथाक्रर्मादिदं द्रव्यद्वयं द्रव्यमुं स्थितियुमेंब द्वितयमुं उभयदळवाराः अधस्तनोपरितनदळवारंगळेंबुवु नानागुणहानिशलाकेगळगे पेसर क्कुमी सूत्रददमिन्तु नाल्कुं राशिगळपेळपट्टुवु ॥ एकभागयुतबहुभागादुर्धमेंबुदत्थं छे 2 Jain Education International O ० मत्तमिगिभागं च वळं a a २ त्वात् । पत्यच्छेदासंख्यातैकभागस्य छे असंख्यातेन उपर्यधोगुणितस्य छे । एकभागं पृथकसंस्थाय छे १ शेष მ a a a a भागयुतमपराधं छे उपरितननानागुणहानिशलाका भवंति ॥ २४७ ॥ aa२ ३७१ a a a २ इत्यानी विकल्पानि योगस्थानानि स्थितिः, पर्याप्तत्रसराशेः तेषु स्वामित्वेन भक्त्वा दीयमान मिन्तु द्वाभ्यां भक्त्वा तत्रैकार्थं छे a अधस्तनानागुणहानिशलाका भवंति । पृथक्स्थापितैक aa२ For Private & Personal Use Only ऊपर जो चौरासी स्थान कहे हैं उनमें से दोइन्द्रिय पर्याप्तके जघन्य परिणाम योगस्थानका प्रमाण जगत श्रेणिके असंख्यातवें भागको पिचहत्तर बार पल्यके असंख्यातवें भाग गुणाकरो । अपवर्तन करनेपर जगतश्रेणिका असंख्यातवाँ भाग ही हुआ । उसमें सूच्यंगुलका असंख्यातवाँ भाग मिलानेपर उसके अनन्तरवर्ती स्थान होता है । उसको आदि देकर संज्ञी पर्याप्तका उत्कृष्ट योगस्थान संदृष्टि अपेक्षा जघन्यसे बत्तीस गुणा और यथार्थ की अपेक्षा पल्यके अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भाग गुणा है । वहाँ तक स्थानोंका प्रमाण कहते हैं दोइन्द्रिय पर्याप्त जघन्य परिणाम योगस्थानसे जो अनन्तर स्थान है वह तो आदि हुआ, और संज्ञी पर्याप्तका उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान अन्त हुआ । 'आदी अंते सुवे हिदे व संजुदे ठाणा' इस सूत्र के अनुसार अन्तमें से आदिको घटाइए। एक-एक स्थान में सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण अविभाग प्रतिच्छेदोंकी वृद्धि होती है, अतः उससे भाग दें । जो प्रमाण हो उसमें एक मिलाइए तब त्रस पर्याप्त सम्बन्धी परिणाम योगस्थानोंका प्रमाण होता है । वहीं स्थितिका प्रमाण जानना । 1 इन स्थानोंके धारक जीव कितने हैं यह बतलाने के लिए कहते हैं जैसे आठ नाना गुणहानियों में से तीन नीचे को कही थीं, पाँच ऊपरकी कही थीं, उसी प्रकार पल्यके अर्द्ध च्छेदोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण समस्त नाना गुणहानि है । उसमें ५ १० १५ २० २५ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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