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________________ ३७० गो० कर्मकाण्डे अनंतरमर्थसंदृष्टियं तोरिदपरु : पुण्णतसजोगठाणं छेदासंखस्ससंखबहुभागे। दलमिगिभागं च दलं दव्वदुगं उभयदलवारा ॥२४७॥ पूर्णत्रसयोगस्थानं च्छेदासंख्यस्यासंख्यबहुभागे। दलमेकभागं च बलं द्रव्यद्वयमुभय५ दलवाराः॥ अर्थसंदृष्टियोळु द्रव्यप्रमाणं पर्याप्तत्रसराशियक्कुं। अवर प्रमाणमुर्मनित दोडे मुन्नं जीवकांडदोळु फेळ्द "आवळिअसंखसंखेणवहिदपवरंगुळेण हिदपवरं। कमसो तसतप्पुण्णा" येदितु त्रसपर्याप्त राशियं संख्यातभाजितप्रतरांगुलभक्तजगत्प्रतरप्रमितमक्कुं ४ योगस्थान द्वींद्रियपर्या मजोवपरिणाम योगजघन्यस्थानमपतितमिवादियागि व वि १६ ॥ ४।।। संशिपंचेंद्रियपर्याप्त१० जीवपरिणामयोगोत्कृष्टस्थानपर्यन्तमाद सर्वनिरंतरपरिणामयोगस्थानंगळु ।। आदी अंते। ३२ । सुघे ३ ३१ । वढिहिदे ० २ ३१ रूवसंजुदे ठाणा ० २ ३१ एंदितिनितुं योग यथार्थसंदृष्टया आहद्रव्यं संख्यातभाजितप्रतरांगुलभक्तजगत्प्रतरप्रमित पर्याप्तत्रसराशिः -द्वींद्रियपर्याप्तपरिणामयोग जघन्यात् - अपवर्तितात् - अनंतरस्थानमिदं २ आदिकृत्वा प्रागुक्तवृद्धघा वषितानि संज्ञिपर्याप्तपरिणाम aप ००५ १५ योगोत्कृष्टपयंतानि ८४ व वि १६ । ४ । - । छे उ आदी - १ अंते - ० ० ०३२ शुद्धे - ०३१ वढिहिदे २ ३१ सर्व-२३१ a a ७५ व वि १६ । ४।- ० ०० ० . यथार्थ कथन दिखाने के लिए कहते हैं जैसे द्रव्यका प्रमाण चौदह सौ बाईस कहा उसी प्रकार संख्यातका भाग प्रतरांगुलमें देनेपर जो प्रमाण आवे उसका भाग जगत प्रतरमें देनेपर जो प्रमाण हो उतना पर्याप्त प्रस जीवोंका प्रमाण है । इसे ही यहाँ द्रव्य जानना। तथा जैसे स्थितिका प्रमाण बत्तीस कहा था उसी प्रकार दो-इन्द्रिय पर्याप्तके जघन्य परिणाम योगस्थानसे लगाकर संज्ञी पर्याप्तकके उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान पर्यन्त जितने योगस्थान हैं उतनी स्थिति जानना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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