SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ १० १५ २० २६२ भेदिदं त्रिविधंगळवु : गो० कर्मकाण्डे उपपा | एकां | परिणा १४ / १४ सा १४ २८ २८ ४२ २८ सा ज ४२ ४२ सा ज अनंतरं सामान्य सामान्य जघन्य सामान्य जघन्योत्कृष्टभेदविदं १४ । २८ । ४२ । पदिनाकुमिपत्ते'टु नाव त्तेरडुमुपपादयोगस्थानं गल्गुपपत्तियं पेव्वपरु : उववादजोगठाणा भवादिसमयट्ठियस्स अवरवरा । विग्गहउजु गइगमणे जीवसमासेसु णायव्वा ॥ २१९ ॥ उपपादयोगस्थानानि भवादिसमयस्थितस्थावरवराणि । विग्रहगतिगमने जीवसमासेषु ज्ञातव्यानि ॥ Jain Education International उपपादयोगस्थानानि उपपादयोगस्थानंगळु भवाविसमयस्थितस्य पृथ्वं भकारीर में बिट्टुत्तर भवदादिसमय दोलिरुत्तिगे । अवरवराणि जघन्योत्कृष्टयोगंगळ विग्रहर्जुगतिगमने विग्रहगतियैवमुत्तरभवक्के सलुवल्लियुं ऋजुगतिगमनदिदमुत्तरभवक्के सलुवल्लियुं । यथासंख्यमागिजघन्योपपावयोगस्थानंगळुमुत्कृष्टोपपादयोगस्थानंगळु जीवसमासेषु चतुर्द्दश जी वसमासे गळोळु क्तरचनाविशेषबोळ ज्ञातव्यानि अरियल्पडुवुवु । उपपद्यते प्राप्यते भवप्रथमसमयो जंतुनेत्युपपादः । एवंतु उपपाद भवति । तेऽपि भेदाः पुनः सामान्यजघन्योत्कृष्टभेदात्त्रिविधा भवन्ति ॥२१८॥ अथ सामान्यजघन्यसामान्योत्कृष्टभेदेन १४ । २८ । ४२ चतुर्दशाष्टाविंशतिद्वाचत्वारिंशदुपपादयोगस्थानानामुत्पत्ति माह उपपादयोगस्थानानि उत्तरभवस्य आदिसमये स्थितस्य, विग्रहगत्योत्तरभवगमने जघन्यानि, ऋजुगत्यात्रोत्कृष्टानि भवन्ति । तानि जीवसमासे चतुर्दशसूक्तरचनाविशेषे ज्ञातव्यानि । उपपाद्यते प्राप्यते भव सामान्यके भेद से चौदह भेद हैं, सामान्य और जघन्यके भेदसे अठाईस भेद हैं । तथा सामान्य, जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे बयालीस भेद हैं ||२१८|| आगे उपपाद योगस्थानका स्वरूप कहते हैं भव के प्रथम समय में स्थित जीवके उपपाद योगस्थान होता है । जो जीव विग्रह गति से जाकर नवीन भव धारण करता है उसके जघन्य उपपाद योगस्थान होता है । और जो बिना मोड़ेवाली ऋजुगतिसे जाकर नवीन भव धारण करता है उसके उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान होता है । वे चौदह जीव समासों में होते हैं। 'उपपद्यते' अर्थात् जो जीवके द्वारा १. ब सामान्यसामान्यजघन्यसामान्यजं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy