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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २६३ योगद सामान्य सामान्यजघन्य सामान्यजघन्योत्कृष्टयोगभेदंगळनितुं भवप्रथमसमयसंभविगळप्पुवेवुवर्थमनंतरं परिणामयोगक्के पेळ्दपरु : . प्रथमसमये जन्तुना इत्युपपादः । तस्य सामान्यादिभेदाः सर्वेऽपि भवप्रथमसमये एव संभवतीत्यर्थः । स्थिति । ए । सू । प स्थिति । ए। बाप | परि । उ०००ज | स्थिति । ए सू अप । परि । उ००ज | स्थिति । ए । बा । अप परि । उ०००ज उ | परि । उ०००ज उ २१ ० १।१। . १८। ३ . ई २१परि। उ०००ज | १।१ ० श २२परि उ०००ज १८।३ परि । उ००ज परि उ०००ज परि। उ०००ज | श २१परि । उ००ज phor शरीर प २१ एकां । उ एकांतानु उ श २ १एकांतानुव उ एकांता उ २ . १।२। ०।१८३ १८।३ १ एकांतानुवृद्धि । ज | १ । एकांतानुवृद्धि ज | १ एकांतानुवृद्धि ज । १ एकांता ज विग्रह शजाउप%30 ऋउ १ । ज । उप30 ऋउ१ ज । उपपा-० ऋउ १ ज उप30 ऋ उ पूर्व भवशरीर पूर्वभवशरीर पूर्वभवशरीर पूर्वभवशरीर भा स्थिति । त्रीप परि । उ०००ज स्थिति । द्वौं । प । भा परि । उ०००ज स्थिति । द्वींद्रि । अप परि। उ०००ज १११ ० १८।३ ० इ श २१ परि । उ०००ज परि । उ०००ज श २१ परि उ०००ज एकांता उ । श २१ एकांत उ ११२ | श २१ एकांता उ १८।३। १ एकांता १ । एकांतानु ज | १ । एकांता ज १। ज । उपपा ० ऋउ १ । ज उपपा ० ऋउ । १ । ज । उपपा ० ऋउ 5००4 पूर्वभवशरीर पूर्वभवशरीर पूर्वभवशरीर भवके प्रथम समयमें प्राप्त किये जाते हैं वे उपपाद योगस्थान हैं। उसके सब सामान्य आदि . भेद भवके प्रथम समयमें ही होते हैं ।।२१९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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