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________________ ८. ८ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २६१ गळप्पुवु । प्रमत्तन ५६ । ५७ एंटेटु भंगंगळप्पुवु । अप्रमत्तन ५६ । ५७ । ५८ । ५९ स्थानंगकोळ प्रत्येकमा दोदप्पुवु। अपूर्वकरणन ५५ । ५६ । ५७ । ५८ ॥ २६ एकैकभंगंगळप्पुवु । अनिवृत्तिकरणन २२।२१ । २० । १९ । १८ एकैकभंगंगळेयप्पु । सूक्ष्मसांपरायन १७ र स्थानदोळेकभागमेयक्कुमी भगंगळु मुंद नामस्थानकथनदोळु सुव्यक्तमावपुवु ॥ __ अनंतरं प्रकृतिप्रदेशबंधंगळगे कारणयोगस्थानंगळ स्वरूपसंख्यास्वामिगळं द्विचत्वारिंशद्गाथासूत्रंगळिवं पेळ्वपर: जोगट्ठाणा तिविहा उववादेयंतवढिपरिणामा। मेदा एक्केक्कंपि य चोइसभेदा पुणो तिविहा ॥२१८।। योगस्थानानि त्रिविधान्युपपावैकान्तवृद्धिपरिणामभेदादेकैकमपि च चतुर्दशभेदानि पुनस्त्रिविधानि ॥ योगस्थानानि योगस्थानंगळ उपपादैकान्तवृद्धिपरिणामभेदात् उपपादएकान्तामुवृद्धिपरिगामभेदविवं त्रिविधानि त्रिप्रकारंगळप्पुवु । च मत्त एकैकमपि उपपादेकांतवृद्धिपरिणामगळाकैकमुं प्रत्येकं चतुर्दश भेवानि चतुर्दशभेवंगळनुवु । पुनः मत्त त्रिविधानि सामान्यजघन्योत्कृष्ट v omwww ५६ । ५७ अष्टावष्टौ । अप्रमत्तस्य ५६ ५७ ५८ ५९ एकैकः । अपूर्वकरणस्य ५५ ५६ ५७ ५८ २६ एककः अनिवृत्तिकरणस्य २२ । २१ । २० । १९ । १८ एकैकः। सूक्ष्मसांपरायस्य १७ स्थाने एकः । एते भङ्गा अग्रे नामस्थानकथने सुव्यक्तं संति ॥२१७।। अथ प्रकृतिप्रदेशबन्धकारणयोगस्थानानां स्वरूपसंख्यास्वामिनो द्विचत्वारिंशदगाथाभिराह योगस्थानानि उपपादकान्तवृद्धिपरिणामभेदात्विविधानि । च-पुनः तेषामेकैकमपि प्रत्येकं चतुर्दशभेदं प्रमत्तमें छप्पन और सत्तावनके स्थानमें आठ-आठ भंग हैं। अप्रमत्तमें छप्पन, सत्तावन, अठावन और उनसठ के स्थानोंमें एक-एक भंग है। अपूर्वकरणमें पचपन, छप्पन, सत्तावन, २० अठावन और छब्बीसंके स्थानोंमें एक-एक भंग हैं। अनिवृत्तिकरणमें बाईस, इक्कीस, बीस, उन्नीस और अठारहके स्थानों में एक-एक भंग है। सूक्ष्म साम्परायमें सतरह के स्थानमें एक भंग है । ये भंग आगे नामकर्मके स्थानोंमें प्रकट करेंगे ॥२१॥ ___ आगे प्रकृतिबन्ध और प्रदेशबन्धके कारण योगस्थानोंका स्वरूप, संख्या और स्वामी बयालीस गाथाओंसे कहते हैं ___ योगस्थान तीन प्रकारके हैं-उपपाद योगस्थान, एकान्तवृद्धि योगस्थान और परिणाम योगस्थान । उनमें से एक-एक भेदके चौदह जीव समासोंकी अपेक्षा चौदह-चौदह भेद होते हैं। ये चौदह-चौदह भेद भी सामान्य, जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे तीन प्रकारके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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