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________________ ५ १० १५ २० गो० कर्मकाण्डे यिल्लि मिथ्यादृष्टचाविगुणस्थानंगळ स्थानविकल्पंगळगे प्रत्येकं प्रकृतिभेददि भंगंगळु पुट्ट ते बोर्ड मिथ्यादृष्टि गुणस्थानदोळ ६७ स्थानमेकप्रकारमेयवकुमत ६९ मरुवत्तो भत्तर ९ २६० १ स्थानदोळ नवभंगंगळवु । मत्तं ७० २ स्थानबोळ ८ भंग गळप्पुवु मत्तं ७२ स्थानदोळु नव ८ रर स्थानदोळो भत्तुसासिरवइन्नूर हदिनारु ९२१६ भंगंगळवु । मत्तं भंगंगळवु । मत्तं ७३ ९२१६ -७४ र स्थानबोळ ४६०८ भंगंगळप्पुवु । सासादनन ७१ र स्थानदोळ ८ भंगंगळप्पुवु । ४६०८ ८ रर स्थानदोळ ३२०० भंगंगळ मत्तं ७२ ६४०० egg | मिश्रन ७३ रर स्थानदोळु ८ भंगंगळप्पुवु । मत्तं ७४ ८ ८ असंयतन अरुवत्तनात्कर र स्थानबोळु ६४०० भंगंगळप्पुवु । मत्तं ७३ ३२०० र स्थानवोल ८ भंगंगळवु । ६४ र स्थानदो एंडु ८ भंगंगळप्पुवु । मत्तं ८ ६५ र स्थानदोळ १६ १६ भंगंगळप्पुवु । मतं ६६ रर स्थानदोळ ८ भंगंगळवु । देश संयतन ६० । ६१ एंटेंड भंगं • ८ ८।८ अत्र गुणस्थानेषु स्थानविकल्पानां प्रकृतिभेदेन भङ्गा उत्पद्यन्ते । तत्र मिथ्यादृष्टो ६७ स्थाने एको १ भङ्गः । पुनः ६९ स्थाने ९ नवभङ्गाः पुनः ७० स्थानेऽष्टौ ८ । पुनः ७२ स्थाने नव ९ । पुनः ७३ स्थाने नवसहस्रद्विशत षोडश ९२१६ । पुनः ७४ स्थाने ४६०८ । सासादनस्य ७१ स्थाने अष्टौ ८ । पुनः ७२ स्थाने ६४०० । पुनः ७३ स्थाने ३२०० । मिश्रस्य ६३ स्थानेऽष्टौ ८ । पनः ६४ स्थाने अष्टौ ८ । असंयतस्य ६४ स्थानेऽष्टौ ८ । पुनः ६५ स्थाने १६ । पुनः ६६ स्थानेऽष्टौ ८ । देशसंयतस्य ६० । ६१ अष्टावष्टी । अप्रमत्तस्य मिध्यादृष्टि गुणस्थान में ज्ञानावरण पाँच, दर्शनावरण नौ, वेदनीय एक, मोहनीय बाईस, आयु एक, नामकर्म तेईस या पच्चीस या अठाईस या उनतीस या तीसका, गोत्र एक और अन्तराय पाँचका बन्ध होता है । सब प्रकृतियोंको जोड़नेपर सड़सठ या उनहत्तर या सत्तर, या बहत्तर या तेहत्तर या चौहत्तरका बन्ध होता है । इसी प्रकार सासादन आदि गुणस्थानों में भी ऊपर कहे अनुसार जानना । Jain Education International प्रकृतियोंके बदलने से भंग होते हैं। जैसे चौहत्तरके बन्ध में वेदनीय कर्मका बन्ध है । उसमें साता या असाताके बन्धकी अपेक्षा दो भंग होते हैं । इसी प्रकार प्रकृतियोंके घटनेबढ़नेसे स्थानभेद होते हैं । और एक ही स्थानमें प्रकृतियोंके बदलनेसे भंग होते हैं । वही कहते हैं २५ ! मिध्यादृष्टि में सड़सठ के स्थानमें एक भंग है। उनहत्तरके स्थानमें नौ भंग हैं। सत्तरके स्थान में आठ भंग हैं । बहत्तर के स्थानमें नौ भंग हैं । तेहत्तरके स्थानमें बानबे सौ सोलह भंग हैं। चौहत्तरके स्थान में छियालीस सौ आठ भंग हैं। सासादनमें इकहत्तर के स्थान में आठ भंग हैं। बहत्तरके स्थान में चौंसठ सौ भंग हैं । तेहत्तरके स्थान में बत्तीस सौ भंग हैं । मिश्र में तिरसठ चौंसठ दोनों स्थानों में आठ-आठ भंग हैं। असंयतमें चौंसठ, पैंसठ, छियासठके स्थानों में आठ-आठ भंग हैं। देशसंयत में साठ और इकसठके स्थान में आठ-आठ भंग हैं । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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