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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनन्तरमुत्तरप्रकृतिगळुत्कृष्टाविगळगे साध्यादि संभवविकल्पंगळं पेव्वपरु : तीस मणुक्कस्सो उत्तरपयडीसु चउविहो बंधो । सति दुवियप सेसचउक्केवि दुवियप्पो ॥ २०८॥ त्रिशतामनुत्कृष्ट उत्तरप्रकृतिषु चतुस्त्रिषो बंधः । शेषत्रये द्विविकल्पः शेषचतुष्केपि द्विविकल्पः ॥ उत्तरप्रकृतिषु उत्तरप्रकृतिगळोळ त्रिशतां मूवत्तु प्रकृतिगळ अनुत्कृष्टः अनुत्कृटमप्प प्रदेशबंधः प्रदेशबंधं चतुविधः चतुव्विधमक्कुमवर शेषत्रये उत्कृष्टाजघन्यजघन्य में व शेवत्रयवोळ द्विविकल्पः साध्यध्रुवविकल्पद्वयमवकुं । शेषचतुष्केपि शेषाणां नवति प्रकृतीनामुत्कृष्टाविचतुष्टयस्तस्मिन् । शेषप्रकृतिगळुत्कृटादिचतुग्विकल्पंगळोळ द्विविकल्पः साद्यध्रुव द्विविकल्पमेयक्कुं अनंत रमा त्रिशत्प्रकृतिगळावुर्बदोडे पेव्वपद : ३० उ २ नाणंतराय दसयं दंसणछक्कं च मोह चोदसयं । तीसह मणुक्कस्सो पदे सबंधी चदुवियप्पो || २०९ ॥ ज्ञानांतरायवशकं दर्शनषट्कं च मोहचतुर्द्दगकं । त्रिशतामनुत्कृष्टः प्रवेशबंधश्चतुव्यिकल्पः ॥ १ Jain Education International ९० उ २ अ ४ अ २ अ २ अ २ ज २ ज २ चतुर्विधोऽपि साद्य वभेदाद्विविधः ॥२०७॥ अथोत्तरप्रकृतीनामाह - उत्तरप्रकृतिषु त्रिशतोऽनुत्कृष्टप्रदेशबन्धः, चतुविधः शेषोत्कृष्टादित्रयेऽपि साधु वभेदाद्विविकल्पः । -१५ शेषनवतिप्रकृतीनामुत्कृष्टा दिबन्धचतुष्केऽपि साद्यघ्र वभेदाद् द्विविकल्प एव || २०८ ।। तां त्रिशतमाह अजघन्य और जघन्य प्रदेशबन्ध सादि और अध्रुवके भेदसे दो प्रकार ही है। मोहनीय और आयुके उत्कृष्ट आदि चारों ही प्रदेशबन्ध सादि और अध्रुवके भेदसे दो प्रकार हैं ||२०७|| दे व णा उ २ उ २ अ ४ अ ४ अ २ अ २ ज २ ज २ आगे उत्तर प्रकृतियों में कहते हैं उत्तर प्रकृतियोंमें तीस प्रकृतियोंका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सादि, अनादि, ध्रुब और २० अध्रुव के भेद से चार प्रकार है। शेष उत्कृष्ट, अजघन्य और जघन्य प्रदेशबन्ध सादि और अध्रुव भेदसे दो प्रकार है। शेष नवेबें प्रकृतियोंके उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, अजघन्य और जघन्व प्रदेशबन्ध सादि और अध्रुवके भेदसे दो प्रकार ही हैं ॥२०८॥ वे तीस प्रकृतियाँ कहते हैं उ २ अ ४ अ २ जं २ मो उ २ अ २ म २ ज २ २५१ भा ना उ २ उ २ अ २ म ४ अ २ ज २ अ २ ज २ For Private & Personal Use Only गो उ २ ar ४ अ २ न २ ܐ अ उ २ अ अ २ ज २ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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