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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २४९ २८।२९।३०। ३१ । १ । स्थानसबंधप्रकृतिगरंगेकचत्वारिंशज्जीवपवंगळोळ स्वामित्वमुं पेळल्पडुगुमप्पुवरिनिल्लि प्रवेशबंधप्रकरणवोळु द्रव्यविभंजनक्रममेकदेशदिवं सूचिसल्पट्टुवु: : ति० गति एकेंद्रि . स ३८ ८९२१ । 1 स३।८ ८९ २१ स्पर्श 1 1 स ०१ स ८ स ३८ ८९९ २०८९१९/२० | ८||१९ अगुरु स ०८ ८९२१ स ०८ ८२२ I स ०८ साधार 1 स ३८ ८९२१ 1 स ०८ ८२९१९१७ ति० अनु 1 औते का I अस्थिर स८ ८९२१ स ०८ ८९४२१ " स८ ८२९१९१६ Jain Education International अशुभ 1 स ०८ ८१९१२१ 1 1 स ०८ स ०.८ स ०८ स ०८ स ०८ ८९९१४८९९।१३ ८४९१९|१२| ८९९।११८९९|१०| दा९९४९ स ०८ ८९२१ हुँ स ०८ ८२९१९१५ उपघात 1 स ०८ ८९२१ वन 1 ' स ३८ ८९२१ 1 स८ स ८ स ०८ स ३८ ८२९१९४१८ ८९ ९११७ | ८४९१९११६ | ८|२९|१५ दुभंग स ३८ ८९२१ 1 स ८ ८२९१९१४ स८ ८९२१ स्थावर 1 स ०८ ८९२१ अनावे 1 स ०८ ८१९१२१ गंध 1 स ०८ ८९२१ स ३८ ८९९३ सूक्ष्म t स ३८ ८९४२१ अयशस्की 1 स ०८ ८९२१ 1 स ८ ८२९१९१२ रस 1 For Private & Personal Use Only स ०८ ८१९१२१ अपय 1 स ३८ ८९२१ 1 स ०८ टा९९८ एवं वक्ष्यमाण शेष २५ | २६ । २८ । २९ । ३० । ३१ । १ । स्थानेष्वप्येकचत्वारिशज्जीवपदेषु वक्तव्यं इति अत्र प्रदेशबन्धप्रकरणे द्रव्यविभञ्जनक्रमः सूचितः ॥ २०६॥ निर्माण 1 स ०८ ८०९।२१ 1 स ८ ८१९१९११ ५ इकतालीस जीवपदोंमें नामकर्म के स्थानोंका बन्ध जिस प्रकारसे होता है उसका कथन आगे करेंगे। इस प्रकार प्रदेशबन्ध के कथनमें द्रव्यका बँटवारा कहा । उसका आशय यह है कि समयप्रबद्ध प्रमाण परमाणुओं में जिस प्रकृतिका जितना द्रव्य कहा उतने परमाणु उस प्रकृतिरूप परिणमते हैं । १० विशेषार्थ -- कोई बहुभाग आदिको न समझता हो तो उसके लिए दृष्टान्त द्वारा समझाते हैं— जैसे सर्वद्रव्य चार हजार छियानबे ४०९६ है । उसका बँटवारा चार जगह करना है । प्रतिभागका प्रमाण आठ है । सो चार हजार छियानबेको आठसे भाग दें। एक भाग बिना बहुभाग ३५८४ आया; क्योंकि चार हजार छियानबेमें आठका भाग देने से लब्ध पाँच सौ बारह आया । उसे चार हजार छियानबेमें घटानेपर ३५८४ रहा । उसके चार समान भाग करनेपर एक-एक भागमें आठ सौ छियानबे आये । शेष एक भाग पाँच . १५ बारह में प्रतिभाग आठका भाग देनेपर चौंसठ आये । सो अलग रख बहुभाग चार सौ अड़तालीस बहुत द्रव्यवालेको देना । शेष एक भाग चौंसठ में प्रतिभागका भाग देने पर आठ आये । उसे अलग रख बहुभाग छप्पन उससे हीन द्रव्यवालेको देना । शेष एक भाग आठमें क- ३२ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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