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________________ २४७ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका एकेंद्रियजाति औदारिक तैजसकार्मणपिंडहुंडसंस्थानवर्णगंधरसस्पर्शतिय्यंगानुपूर्व्य अगुरुलघु उपघातस्थावर सूक्ष्म अपर्याप्त साधारणशरीर अस्थिरअशुभदुर्भग अनादेय अयशस्कोत्तिनिर्माणमें बी एकविंशतिसबंपिंडापिडप्रकृतिस्थानंगळोळ पसल्वेडि आवल्यसंख्यातेकभागप्रमितप्रतिभागदिदं भागिसि बहुभागमं स ।। ८ बहुभागे समभागो बंधाना स २ । ८ में देकविंशतिस्थानंगळोळ ८.९ ९९९९।२ ८।९।२१ ८।९ ८।९।९।१ मेकविंशति भक्तैकभागमं स ०।८ प्रत्येकमिरिसि शेषेकभागोलु स १ उक्तक्रमः ५ प्रतिभागभक्तबहुभागद्रव्यं स । ८ बहुकस्य देय एंदु प्रकृतिपाठक्रमदोलु तुदियिदं मोवल्वरं विपरोतमागि देयं होनक्रममप्पुरिदं निर्माणनामकर्मदोळु कुडल्पडुगुमन्ते शेषेकभागदोळु प्रतिभागभक्तबहुभागद्रव्यमयशस्कोत्तिनामदोळ कुडल्पडुगु स ।८ मन्ते शेषेकभागदोळु प्रतिभागभक्तबहुभागद्रव्यमनादेयनामदोळ कुडल्पडुगु स ।८ मिन्तु प्रतिभागभक्तशेषेकभागबहुभाग ८।९।९।२ दरिकतैजसकार्मणहुण्डसंस्थानवर्णगन्धरसस्पर्शतिर्यगानुपूर्वागुरुलघूपघातस्यावरसूक्ष्मपर्याप्त साधारणास्थिराशुभ - १० दुर्भगानादेयायशस्कीतिनिर्माणनाम्नीषु दातुं आवल्यसंख्यातेन भक्त्वा बहुभागः स ८ एकविंशत्या भक्त्वा स ८ ८९२१ प्रत्येक देयः । शेषेक भागे स १ प्रतिभागभक्तबहभागः स । ८ निर्माणे देयः । शेषेकभागे प्रतिभागभक्तबहुभागः अयशस्को? देयः स ८ शेषकभागे प्रतिभागभक्त ८९९।२ ५ अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयशस्कीर्ति और निर्माण । इन तेईस प्रकृतियोंका एक साथ बन्ध । मिथ्यादृष्टि मनुष्य या तिर्यच करता है। सो यह स्थान साधारण सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्धपर्याप्तक भवको प्राप्त करनेके योग्य है अर्थात् इसका बन्ध करनेवाला मरकर साधारण सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक भवमें उत्पन्न होता है । इनका बँटवारा कहते हैं पूर्वमें मूल प्रकृतियोंके बँटवारेमें जो नामकर्मका द्रव्य कहा है उसमें आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देकर एक भागको अलग रख बहुभागके समान इक्कीस भाग करें। २० और एक-एक भाग एक-एक प्रकृतिको देवें । यद्यपि बन्धमें तेईस प्रकृतियाँ हैं तथापि औदारिक, तैजस, कार्मण ये तीनों एक शरीर नामक पिण्डप्रकृतिमें आ जाती हैं और पिण्ड प्रकृतियों में एक-एक प्रकृतिका ही बन्ध है। इससे यहाँ इक्कीस भाग ही किये हैं। शेष रहे एक भागमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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