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________________ • कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका २४५ । २३ । ३२ | बंद लब्धम रतिनोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं संख्यातगुणमक्कुं । स = ३२ मत्तमो प्रका८।१०।४८ दिदं प्रमु २१ । ४८ । फ स a = ८ । १० इ मु २१ । १६ । बंद लब्धं हास्यनोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं 1 संख्यातगुणहीन मक्कुस १६ मत्तमन्ते प्रभु २१ । ४८ । फ ८ । १० । ४८ I लब्धं शोकनोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं संख्यातगुणितमकुं स = ३२ ८।१०।४८ । सa = ८।१० सबंध पंचनोकषाय प्रकृति गळु क्रमदिद विशेषहोनक्र मंगळादोडं पिडंगळगे तम्मोळु कालसंचयमनाश्रयिसि उक्तप्रकाविर्द ५ द्रव्यविभंजनं तंतम्म बंधकालदोळप्पु ॥ मु२३४८ | फस मे इ २११६ । लब्धं रतिनोकषायस्य स्तोकं स ० १६ तथा प्रमु २१४८ । ८१० ८ १०४८ इ । मु. २१३२ । बंद | I फस- इमु २ १ ३२ लब्धं अरतिनो कप | यस्य संख्यातगुणं स ० - ३२ एवं प्रमु २१४८फ स ८१० ८१०४८ इमु २११६ लब्धं हास्यनोकषायस्य संख्यातगुणहीनं स Jain Education International } = १६ तथा प्रमु २१ । ४८ फस ८ । १०४८ ८१० 1 इमु २ १ । ३२ लब्धं शोकनोकषायस्य संख्यातगुणं - ३२ सबन्धपञ्च नोकषायाः विशेषहीनक्रमा १० ८१०४८ अपि पिण्डानां परस्परं कालसंचयमाश्रित्य उक्तप्रकारेण द्रव्यविभंजनस्वस्वबन्धकाले भवति ॥ २०५ ॥ है । तथा नपुंसक वेदके कालकी सहनांनी बयालीस अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे उतना नपुंसकवेद सम्बन्धी द्रव्य है । यह स्त्रीवेद के द्रव्य से संख्यातगुणा है । रति और अरति सम्बन्धी द्रव्यको अड़तालीस अन्तर्मुहूर्त से भाग देनेपर जो प्रमाण हो उसको रतिके काल सोलह अन्तर्मुहूर्त से गुणा करनेपर जो प्रमाण हो वह रति सम्बन्धी द्रव्य जानना । १५ वह थोड़ा है । तथा अरतिके काल बत्तीस अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो वह अरति सम्बन्धी द्रव्य जानना । वह रतिके द्रव्यसे संख्यातगुणा है । तथा हास्य और शोक सम्बन्धी द्रव्यको अड़तालीस अन्तर्मुहूर्तका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उसे हास्यके काल सोलह अन्तर्मुहूर्त से गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना हास्य सम्बन्धी द्रव्य है । तथा शोकके काल बत्तीस अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो वह शोक सम्बन्धी द्रव्य है । वह २० हास्य के द्रव्य से संख्यातगुणा है । इस प्रकार जिनका एक साथ बन्ध होता है उन पाँच नोकषायका द्रव्य पूर्वोक्त क्रमसे हीन हीन होता है । तथापि पिण्डरूप में नाना कालमें एकत्र होकी अपेक्षा इस प्रकार से द्रव्यका बँटवारा अपने-अपने बन्ध कालमें होता है । सो तीन वेदका एक पिण्ड होता है। रति-अरतिका एक पिण्ड होता है । हास्य-शोकका एक पिण्ड होता है ||२०५|| For Private & Personal Use Only ८१० 1 २५ www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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