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गो० कर्मकाण्डे यिन्नु त्रैराशिकंगळु माडल्पडुवुवदेत दोडे वेदत्रयदिनितंतम्मुंहतंगळगेस्लमिनितुं द्रव्यमागुत्तिरलागळिनितंतम्मुहूर्तशलाकेगळ्गेनितु द्रव्यमक्कूमें दिन्तनुपातत्रैराशिकमं माडि प्र.मु२१ । ४८ । फ- स ० इ। मु २३।२। बंद लब्धं पुवेदप्रतिबद्धद्रव्यं स्तोकमक्कुं स २ मतमित ८।१०
८।१०। ४८ प्र मु २१ । ४८ । फ स . इ। मु। २१ । ४। बंद लब्धं स्त्रीवेदप्रतिबद्धद्रव्यं संख्यातगुणित
८।१० ५ द्रव्यमक्कुं स । । ४ मत्तमंते प्रमु२१ ॥ ४८ । फ स इ। मु। २१ । ४२। बंद
८।१०। ४८ लब्ध नपुंसकवेद प्रतिबद्धद्रव्यं संख्यातगुणितमकुं स ०४२... मत्तमो प्रकारदिवं हास्य
८।१०।४८ प्रत्यरतिशोकंगळगं मुहूत्तंशलाकेगळु प्रमु । २३ ॥ ४८ । फ स इमु । २५ ॥ १६ ॥ बंद लब्धं
८।१०
८।१०
रतिनोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं स्तोकमक्कुं स = १६ मत्तमंते प्रमु २१ । ४८ । फ स= इमु
८।१०। ४८
८।१०
२१ । ४८ । हास्यद्विकारतिद्विकयोरपि तावत्यः २१ । ४८। यदि वेदत्रयस्य तावतीनां एतावद्रव्यं तदा १. एतावतीनां कियत् ? इति प्र मु २ १ । ४८ । फ। स इमु २१।२ लब्धं पुंवेदप्रतिबद्धद्रव्यं स्तोकं
८।१०
स।। २ ८।१०।४८
तथा प्रमु २१। ४८ फ स ० इमु २१४ लब्धं स्त्रीवेदस्य संख्यातगुणं स ०४ ८ १०
८१०४८
तथा प्र मु २१४८ । फ स . इमु २१। ४२ लब्धं नपुंसकवेदस्य संख्यातगुणं स ।। ४२ एवं प्र ८१०
८१.४८
है। नपुंसक वेदका उससे कुछ अधिक है। उसकी सहनानी बयालीस गुणा अन्तर्मुहूर्त है। तीनों वेदोंका काल मिलानेपर २+४+४२ =अड़तालीस अन्तर्मुहूर्त होता है। हास्य-शोक
और रति-अरतिका काल मिलानेपर भी १६+ ३२ अड़तालीस मुहूर्त होता है। मिले हुए कालको प्रमाण राशि, पिण्डरूप द्रव्यको फलराशि, और अपने-अपने कालको इच्छाराशि करनेपर त्रैराशिक द्वारा लब्धराशिमे अपने-अपने द्रव्यका प्रमाण आता है।
सो तीनों वेदोंके सत्तामें स्थित द्रव्यका जो प्रमाण है उसको तीनोंके मिले हुए कालकी सहनानी अड़तालीस मुहूर्तसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उसको पुरुषवेदके कालको २० सहनानी दो अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना पुरुषवेद सम्बन्धी द्रव्य
जानना। यह सबसे थोड़ा है। तथा स्त्रीवेदके कालकी सहनानी चार अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना स्त्रीवेद सम्बन्धी द्रव्य है। यह पुरुषवेदके द्रव्यसे संख्यातगुणा
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