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________________ २४२ गो० कर्मकाण्डे ८। २।९ ई पेळल्पट्ट नोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं स ० ८. सबंधएंचनोकषायप्रकृतिषु सहबंधंगळप्प पुवेदरतिहास्यभयजुगुप्साप्रकृतिपंचकदोळं मिथ्यादृष्टि मोदल्गोंडु अपूर्वकरणपय्यंतमाद गुणस्थानत्तिगळ्गे होनक्रम देयमक्कुं मेणु पुंवेद। अरति । शोक । भय । जुगुप्सा प्रकृतिपंचकदोळु मिथ्यावृष्टिमोदलगोंडु प्रमत्तपय॑न्तमाद षड्गुणस्थानत्तिगळ्गे होनक्रमं देयमक्कुं। स्त्रीवेद५ रतिहास्यभयजुगुप्साप्रकृतिपंचकदोळं मेणु स्त्रीवेद-अरतिशोक-भयजुगुप्साप्रकृतिपंचकदोळं मिथ्यादृष्टिगं सासादनंग होनक्रम देयमक्कुं। नपुंसकवेद रतिहास्य भयजुगुप्सा प्रकृति पंचकदोळं मेणु नपुंसकवेद अरति शोक भय-जुगुप्सा प्रकृतिपंचकदोळं मिथ्यादृष्टियोळे होनक्रम देयमक्कुं। अनिवृत्तिकरणदोळु पुवेद नोकषायमोंदे बंधमप्पुरिंदमकषायप्रतिबद्धद्रव्यमनितु मनिवृत्तिसवेद भागे पर्य्यन्तमदरोळेयक्कुम बी विशेषमरियल्पडुगुं । देशे देशघाति संज्वलनकषायदोळु देशावरण१. द्रव्यं संज्वलनदेशघातिप्रतिबद्धद्रव्यं स तथा संबंधप्रकृतिषु अहंगे सहबंधप्रकृतिगळोळु होन क्रम देयमक्कुमदेते दोडे मिथ्यादृष्टिमोदल्गोंडु अनिवृत्तिकरणक्रोधबंधभागे पथ्यंत सहबंधसंज्वलन चतुष्टयदोळ होनक्रम देयमक्कुं। क्रोधबंधोपरतानिवृत्तितृतीयभागदोळु सहबंधसंज्वलन ८। २ तन्नोकषायप्रतिबद्धद्रव्यं स ८ संबन्धपञ्चकनोकषायप्रकृतिषु पुवेदरतिहास्यभयजुगुप्सासु अपूर्व ८२९ करणान्तानां वा पुंवेदारतिशोकभयजुगुप्सासु प्रमत्तांतानां स्त्रोवेदरतिहास्यभयजुगुप्सासु स्त्रीवेद-अरति-शोकभय" जगप्सासु मिथ्यादृष्टिसासादनयोः नपुंसकवेदरतिहास्यभयजुगुप्सासु वा नपुंसकवेदारतिशोकभयजुगुप्सासु मिथ्या दृष्टश्च होनक्रमेण देयम् । अनिवृत्तिकरणे एकः पुंवेद एव बध्यते, तेन अकषायप्रतिबद्धद्रव्यं सर्व सवेदभागपर्यंतं तत्रैव देयं इति विशेषो ज्ञातव्यः। देशघातिसंज्वलनकषाये देशावरणद्रव्यं स सबन्धप्रकृतिषु हीनक्रमेण ८२ देयम् । तद्यथा नोकषाय सम्बन्धी द्रव्य एक साथ बँधनेवाली पाँच नोकषायोंमें हीनक्रमसे देना चाहिए । सो मिथ्यादृष्टिसे लगाकर पुरुषवेद, रति, हास्य, भय और जुगुप्साका अपूर्वकरण पर्यन्त अथवा पुरुषवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्साका प्रमत्त पर्यन्त एक साथ बन्ध होता है । तथा स्त्रीवेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्साका मिथ्यादृष्टि और सासादनमें एक साथ बन्ध होता है। तथा नपुंसक वेद, रति, हास्य, भय, जुगुप्साका अथवा नपुंसक वेद, अरति, शोक, भय, जुगुप्साका मिथ्यादृष्टि में एक साथ बन्ध होता है। सो नोकषाय सम्बन्धी द्रव्यका बँटवारा जैसे पूर्व में कहा है उसी प्रकार जिन पाँच प्रकृतियोंका बन्ध हो उनको क्रमसे हीन-हीन देना। अनिवृत्तिकरणमें एक पुरुषवेदका ही बन्ध होता है अतः वहाँ सवेद भाग पर्यन्त नोकषाय सम्बन्धी सब द्रव्य एक पुरुषवेदको ही देना चाहिए। तथा देशघाती संज्वलन कषायका देशघाती द्रव्य, एक साथ जितनी प्रकृतियाँ बँधे उनको हीनक्रमसे देना चाहिए। सो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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