SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 271
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९९९९९/२ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका २२१ द्वयक्क कोट्टुदनरडरिदं भागिसि समानादुदं स ० ८ प्रत्येकमेरडेडयोळं कोट्टु शेषेकभागमनिदं स०१ आयुष्यक्के कोडुबुरिन्तु कुडुत्तं विरलु वेदनीयं पोरगागि शेषप्रकृतिगळणे तंतम्म स्थित्यनु९९९९९ सारियागि ब्रव्यंगळायुष्यकमक्के सर्वतः स्तोकमक्कुं। नामगोत्रंगळोळधिकमागियुं तंतम्मोलु सरियक। मन्तरायदर्शनावरणज्ञानावरणत्रयधिकमागियुं तम्मोळु सरियक्कं । मोहनीयदोळु अधिकमक्कुं। वेदनीयदोळमधिकमक्कुमदु मुंपेन्द मूलप्रकृतिगळ पसुगेय द्रव्यंगळु सिद्धमादुवु ॥ ५ अनंतरं ज्ञानावरणादिमूलप्रकृतिगळ्गे पेळ्द पिंडद्रव्यमं तंतम्मुत्तरप्रकृतिगळोळु विभागिसि कुडुवे प्रकारमं पेळ्दपर : ज्ञानदर्शनावरणांतरायेषु प्रत्येक देयः। शेषकभागे स . १ पुनरावल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागः द्वाभ्यां भक्त्वा स ८ प्रत्येकं नामगोत्रयोर्देयः । शेषकभागं स ० १ आयुषि दद्यात् । एवं दत्ते आउगभागो थोवो इति गायोक्तक्रमः सिद्धः ॥१९५।। अथ मलप्रकृतीनां उक्तपिण्डद्रव्यं स्वस्योत्तरप्रकृतिषु १० भक्त्वा दानक्रममाह एक समान भागमें उस बहुभागको मिलानेसे जितना प्रमाण हो उतने परमाणु उस समयप्रबद्ध में-से वेदनीय कर्मरूप परिणमते हैं । अब जो एक भाग रहा उसमें भी आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग दें! और एक भागको अलग रख शेष बहुभाग मोहनीय कर्मको देवें। इस बहुभागको भी आठ समान भागोंमें से एक भागमें मिलानेपर जो १५ प्रमाण हो उतने परमाणु मोहनीय कर्मरूप परिणमते हैं। अलग रखे एक भागमें भी आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग दें और एक भागको अलग रख शेष बहुभागके तीन समान भाग करें। और एक-एक भाग ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तरायको देखें। इस एक-एक भागको आठ समान भागों में एक-एक भागमें मिलानेपर जो प्रमाण हो उतने उतने परमाणु क्रमसे ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय कर्मरूप परिणमते हैं। इन २० तीनोंका द्रव्य परस्परमें समान होता है। अलग रखे एक भागमें भी आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग दे। एक भागको अलग रख बहुभागके दो समान भाग करके एक-एक भाग नाम और गोत्रको दें । और उन आठ भागोंमें-से एक-एक समान भागमें इस एक-एक भागको मिलानेपर जो प्रमाण हो उतने-उतने परमाणु क्रमसे नाम और गोत्ररूप परिणमते हैं। इन दोनोंका द्रव्य परस्पर समान होता है । एक भाग जो रहा वह आयु कमको देवे और २५ उन आठ समान भागों में से शेष रहे एक भागमें मिला दें। जो प्रमाण हो उतने परमाणु आयुकर्मरूप परिणमते हैं। इस प्रकार जो 'आउगभागो थोवो' आदि गाथामें कहा था वह निष्पन्न हुआ ।।१९५।। ___ आगे मूल प्रकृतियोंमें जो ऊपर पिण्डद्रव्य कहा है उसे अपनी-अपनी उत्तर प्रकृतियोंमें विभाजित करके देनेका क्रम कहते हैं १. क°व क्रममं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy