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________________ ५ १० गो० कर्मकाण्डे ज्ञानावरणाद्यष्टविधमूलप्रकृतिगळगेल्लं बहुभागवोळ समभागमक्कुं । एक्कभागम्मि शेषैकभागवोळ उक्तक्रमः पूर्वोक्तक्रम मक्कुमल्लि तु मत्ते । बहुभागः बहुभागं । बहुकस्य देयः पिरिदप्पुath drमक्कुम ते बोडे सिद्धराशियं नोडलुमनंतैकभागमुमभव्यराशियं नोडलुमनंतगुणमुमप्प काम्मंणसमयप्रबद्धद्रव्यमनिद । स । पूर्वोक्तावल्यसंख्या तक भागमात्रप्रतिभागहादिदं भागिसि बहुभागमं स ० ८ आयुब्बंधकालदोळु मूलप्रकृतिगळे टक्कै मेल्लमिनितु द्रव्यमागलों दु प्रकृतिनितु ९ २२० ९ द्रव्यमक्कु त्रैराशिकमं माडि बंदलब्धमन टेडेयोळं प्रत्येकमिरिति शेषैकभागमनिदं स ० १ मत्तमावल्यसंख्यातैकभार्गादिदं भागिसि बहु भागमनिदं स ८ बहुकस्य देयमेंदु वेदनीयके कोट्टु शेषैकभागमं स ० १ मत्तमावल्यसंख्यातदिदं भागिसि बहुभागमनिदं स ८ मोहनीयक्के कोट्टु ९९ ९९ ९९९ ९९९ ९९९९ शेषेक भागमं स ०१ मत्तमावल्यसंख्यातैकभागदिदं भागिसि बहुभागमं स ०८ ज्ञानावरणदर्शनावरणान्तराय घातित्रयक्कं' कोट्टदं मूररिदं भागिति समनादुदं स ०८ प्रत्येकं मूरडेयोळ कोट्टु शेषैकभागमं स ० १ पूर्वोक्तावल्य संख्यातदिदं भागिति बहुभागमनिदं स ८ नामगोत्र ९९९९/३ ९९९९ ९९९९९ मूलप्रकृतीनामष्टानां बहुभागे समभागो देयः । तत्रैकभागे उक्तक्रमो भवति । तत्र तु पुनः बहुभागः बहुकस्यं देयः । तद्यथा - कार्मणसमयप्रबद्धद्रव्यमिदं स तत् आवल्यसंख्यातेन भक्त्वा बहुभागः स ८ अष्टभिर्भक्त्वा स ८ अष्टसु स्थानेषु प्रत्येकं स्थाप्यः, शेषैकभागे स ० १ आवल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागः ९ ९.८ ९ १५ स ८ बहुकस्य वेदनीयस्य देयः । शेषैकभागे स १ पुनरावल्यसंख्यात भक्तबहुभागः मोहनीयस्य देयः ९९ ९९ ८ शेषैकभागे स १ पुनरावल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागः स ८ त्रिभिर्भक्त्वा स ८ ९९९ ९९९ ९९९९ ९९९९३ आठ मूल प्रकृतियोंको बहुभाग तो बराबर-बराबर समान देना चाहिए। जो एक भाग रहा उसको उक्त क्रमसे देना । किन्तु उसमें भी जिसका बहुत द्रव्य हो उसको बहुभाग देना चाहिए। वही कहते हैं २० एक समय में जो कार्माण सम्बन्धी समयप्रबद्ध ग्रहण किया, उसके परमाणुओंका जी प्रमाण है उसे कार्मण समयप्रबद्ध द्रव्य कहते हैं। उसमें आवलीके असंख्यातवें भाग 'एक मांगको पृथक रखकर बहुभागके आठ समान भाग करें। भाग देवें । और एक-एक समान भाग आठ स्थानोंमें अलग-अलग रखें। और जो एक भाग अलग रखा है उसमें भी आवली के असंख्यातवें भागसे भाग देवें । तथा एक भागको अलग रखकर शेष बहुभाग २५ जिसका बहुत द्रव्य कहा है उस वेदनीय कर्मको देवें । सो पूर्वोक्त आठ समान भागों में से १. मक्कं मू । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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