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________________ २१९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अक्कुम दितु परमागमदोळु पेळल्पटुदु ॥ अनन्तर शेषप्रकृतिगळ्गे स्थित्यनुसारिद्रव्यविभंजनमक्कुमदु पेळ्दपरु : सेसाणं पयडीणं ठिदिअणुभागेण होदि दव्वं तु । आवलिअसंखभागो पडिभागो होदि णियमेण ॥१९४।। शेषाणां प्रकृतीनां स्थितिप्रतिभागेन भवति द्रव्यं तु । आवल्यसंख्य भागः प्रतिभागो भवति ५ नियमेन ॥ शेषमूलप्रकृतिगळगेल्लं स्थितिप्रतिभागदिदं द्रव्यमक्कुं। तु मते। अधिकागमननिमित्तमागि। प्रतिभागं प्रतिभागहारं। आवल्यसंख्यभागः आवल्यसंख्यातकभागमेयककुं। नियमेन नियमदिदं । भागहारान्तरनिर्वृत्यर्यमागि नियमवचनमा भागहारक्क नवांक संदृष्टियक्कुं९॥ ई आवल्यसंख्यातदिदं भागिसि पसुगेयं माळ्प क्रममं पेळ्दपरु : बहुभागे समभागो अट्ठण्हं होदि एक्कभागम्हि । उत्तकमो तत्थवि बहुभागो बहुगस्स देयो दु ॥१९५॥ बहुभागे समभागोऽष्टानां भवत्येकभागे। उक्तक्रमस्तत्रापि बहुभागो बहुकस्य देयस्तु॥ तीति परमागमे निर्दिष्टम् ॥१९३॥ अथ शेषाणां स्थित्यनुसारिद्रव्यविभजनमित्याह शेषसर्वमूलप्रकृतीनां स्थितिप्रतिभागेन द्रव्यं भवति । तु-पुनः तत्राधिकागमननिमित्तं प्रतिभागहारः १५ आवल्यसंख्येयभागो नियमेन । भागहारान्तरनिवृत्त्यर्थं नियमवचनम् । तत्संदृष्टिनवाङ्कः ९ ॥१९४॥ अनेन विभागक्रमं दर्शयति है । अतः अन्य सब मूल प्रकृतियोंके भागरूप द्रव्यसे वेदनीयका द्रव्य बहुत है, ऐसा परमागममें कहा है ॥१९॥ शेष कोके द्रव्यका विभाग उनकी स्थितिके अनुसार होता है, यह कहते हैं- २० वेदनीयके बिना शेष सब मूल प्रकृतियोंका द्रव्य स्थिति के प्रतिभागके अनुसार होता है अर्थात् जिस कर्मकी स्थिति बहुत है उसका द्रव्य अधिक है। जिनकी स्थिति परस्परमें समान है उनका द्रव्य परस्पर में समान जानना। जिसकी स्थिति कम है उसका द्रव्य थोड़ा है। अधिक भाग लानेके लिए प्रतिभागहार आवलीका असंख्यातवाँ भाग नियमसे होता है। 'नियम' पद इसलिए दिया है कि अन्य भागहार नहीं होता। उसकी संदृष्टि 'नौ'का अंक है। २५ इसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे सो एक भाग जानना । और एक भागके बिना शेष सब भागको बहुभाग जानना ॥१९४॥ आगे विभागका क्रम कहते हैं १. ब सारदें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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