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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका २११ एकानेकक्षेत्रस्थितरूप्यनंतकभागः भवेद्योग्यं एकक्षेत्रस्थितरूपिद्रव्यानन्तकभागमेकक्षेत्रस्थितयोग्यरूपिद्रव्यमकुं। अनेकक्षेत्रस्थितरूपिद्रव्यानन्तकभागमनेकक्षेत्रस्थितयोग्यरूपिद्रव्यमक्कुं-- एक = यो अनेक = योग्य | १६ ख । ६।१ १६ ख ६।१ = प ख पख ई येरडु राशिळिदं होनंगळप्प तंतम्म राशिगळेकानेकक्षेत्रस्थितायोग्यरूपिद्रव्यंगळप्पुवल्लि एकक्षेत्रस्थितायोग्यरूपि १६ ख ६ ख अनेकक्षेत्रस्थितायोरयरूपि १६ ख ३६ ख तत्र अव= प ख पख रोळु एकानेकक्षेत्रस्थितयोग्यायोग्यरूपिद्रव्यंगळोळु प्रत्येकं साविरूपिद्रव्यमें दुमनाविरूपिद्रव्यमेदु ५ द्विविधमप्पुवल्लि साद्यनादियोग्यायोग्यद्रव्यप्रमाणंगळगे उपपत्तियं पेळ्दपरु : तयोरेकानेकक्षेत्रस्थितरूपिद्रव्ययोरनन्तकभागः स्वस्वयोग्यरूपिद्रव्यं भवति-एक = योग्यं अनेक = योग्यं तेन विहीनं स्वस्वावशेषमयोग्यरूपिद्रव्यं भवति । तत्रकक्षेत्रस्य १६ ख ६ व अनेक = प १ ख 0 -- क्षेत्रस्य १६ ख = । ६। ख तेष्वेकानेकक्षेत्रस्थितयोग्यायोग्यरूपिद्रव्येषु प्रत्येक सादिरूपिद्रव्यं अनादि रूपिद्रव्यं च भवति ॥१८७॥ तत्र साद्यनादियोग्यायोग्यद्रव्यप्रमाणानामुपपत्तिमाह एक क्षेत्र और अनेकक्षेत्र में स्थित पुद्गलद्रव्यका जितना परिमाण है उसके अनन्तवें भाग तो अपना-अपना योग्य पुद्गलद्रव्य है और शेष अयोग्य पुद्गलद्रव्य हैं। उनमें से एक क्षेत्र सम्बन्धी पुद्गल द्रव्यके परिमाणमें अनन्तसे भाग दें। एक भाग प्रमाण कर्मरूप होनेके योग्य पुद्गलोंका प्रमाण है । शेष भाग प्रमाण कर्मरूप होनेके अयोग्य पुद्गलोंका प्रमाण है । इस प्रकार चार भेद हुए-एक क्षेत्रमें स्थित योग्य द्रव्य, एक क्षेत्रमें स्थित अयोग्य द्रव्य, १५ अनेक क्षेत्रस्थित योग्यद्रव्य, अनेक क्षेत्र स्थित अयोग्य द्रव्य । एक-एक भेदमें भी सादि द्रव्य और अनादि द्रव्य जानना । जो अतीतकालमें जीवके द्वारा ग्रहण किया गया वह सादिद्रव्य है। और जो अनादिकालसे जीवके द्वारा ग्रहण नहीं किया गया वह पुद्गलद्रव्य अनादिद्रव्य जानना ॥१८७।। आगे इनका प्रमाण जानने के लिए कथन करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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