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________________ २१२ गो० कर्मकाण्डे जेठे समयपबद्धे अदीदकालाहदेण सव्वेण । जीवेण हदे सव्वं सादी होदित्ति णिदिळें ॥१८८।। जेठे समयप्रबद्ध अतीतकालाहतेन सर्वेण । जीवेन हते सर्व सादी भवतीति निद्दिष्टं ॥ उत्कृष्टयोगाज्जितोत्कृष्टसमयप्रबद्धमनतोतकालदिदं गुणिसल्पटु सर्वजीवराशियिद ५ गुणिसुत्तं विरलु सर्वजीवसंबंधि सादिद्रव्यमक्कु दु श्रीवीतरागसद्धि पेळल्पट्ट परमागमदोळु पेळल्पटुदल्लि त्रैराशिकंगळमाडल्पडुवुवदे ते दोडे एकसमयदोळुत्कृष्टसमयप्रबद्धद्रव्यं स्वीकृतमागुतं विरलु संख्यातावलिगुणितसिद्धराशिप्रमितमप्प अतीतकालसमयंगळ्गेनितु द्रव्यमक्कुम दितु त्रैराशिकम माडिदोडे प्र । स १ । फ स ३२ इ। अ। बंद लब्धमकजीवसंबंधि सादिद्रव्यमक्कु । स ३२ । अ । मदं सर्वजीवराशियिदं गुणिसिदोर्ड त्रैराशिकसिद्ध । प्र १ । जी १ । फ स ३२ । अ । १० । इ। जी १६ । लब्धप्रमितं सर्वजीवसंबंधि सादिद्रव्यमक्कुं । स ३२ । अ १६ ॥ अनन्तरमेकानेकक्षेत्रस्थितकम्मयोग्यायोग्यद्रव्यंगळोळिरुत्तिई योग्यायोग्यसादिद्रव्यप्रमाणमं पेदपरु : सगसगखेत्तगयस्स य अणंतिम जोग्गदव्यगयसादी। सेसं अजोग्गसंगयसादी होदित्ति णिद्दिढें ॥१८९॥ स्वस्वक्षेत्रगतस्य चानंतैकभागो योग्यद्रव्यगतसादि । शेषमयोग्यसंगतसादि भवतीति निद्दिष्टं ॥ ___ उत्कृष्टयोगाजितोत्कृष्टसमयप्रबद्धे अतीतकालगुणितसर्वजीवराशिना गुणिते सति सर्वजीवसंबन्धि सादिद्रव्यं भवति । तत्रैकसमये यद्युत्कृष्टसमयप्रबद्धद्रव्यं गृह्णाति तदा संख्यातावलिहतसिद्धराशिमात्रातीतकाले कियदिति प्र-स १ फ-स ३२ इ अ, लब्धमेकजीवसंबन्धि सादिद्रव्यं भवति । स ३२ अ । इदं पुनः सर्वजीवराशिना गुणितं सर्वजीवसंबन्धि भवतीति जिननिर्दिष्टं स ३२ अ १६ ॥१८८॥ अथकानेकक्षेत्रस्थितकर्मयोग्यायोग्यद्रव्येष स्थितयोग्यायोग्यसादिद्रव्यप्रमाणमाह २० - उत्कृष्ट योगके द्वारा उपाजित उत्कृष्ट समयप्रबद्धको अतीतकालसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उसको सर्व जीवराशिके प्रमाणसे गुणा करनेपर सर्वजीव सम्बन्धी सादिद्रव्यका प्रमाण होता है। संख्यात आवलीसे सिद्धराशिको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना २५ अतीतकाल के समयोंका प्रमाण है । यदि एक समयमें उत्कृष्ट समयप्रबद्ध प्रमाण पुद्गलद्रव्य का ग्रहण होता है तो अतीतकालके समयोंमें कितने पुद्गलद्रव्यका ग्रहण हुआ ऐसा त्रैराशिक करो। सो प्रमाणराशि एक समय, फलराशि उत्कृष्ट समयप्रबद्धं, इच्छाराशि अतीतकालके समय । फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणसे भाग देनेपर जो प्रमाण हो उतना सर्वजीव सम्बन्धी सादि पुद्गलद्रव्य जानना। इस प्रमाणको समस्त पुद्गलराशिके प्रमाणमें-से १० घटानेपर जो प्रमाण शेष रहे उतना अनादि पुद्गलद्रव्य जानना ।।१८८।। आगे पूर्वोक्त भेदोंमें सादि द्रव्यका प्रमाण कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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