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गो० कर्मकाण्डे
कक्षेत्रं अनेक क्षेत्रम बुक्कुमिन्तेक क्षेत्राने कक्षेत्रंगळोळ एकक्षेत्रं ६ अनेकक्षेत्रं =६ क्षेत्रनुसारि
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स्थितं तंतम्म क्षेत्रानुसारियागिहूं रूपि सर्व्वपुद् गलद्रव्यं विभागिसल्पट्टोडेकानेक क्षेत्रंगल त्रैराशिक सिद्धं गळिनितिनितप्पु । प्र ।फ १६ ख । इ ६ लब्धमेक क्षेत्रस्थितरूपि
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१६ ख ६ प्र=फ १६ ख । इ६ लब्धमनेक क्षेत्रस्थिररूपि १६ ख६
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१० भवतीत्यर्थः । तु पुनः तेनैकक्षेत्रेण ऊनं अवशेषलोकक्षेत्रं अनेकक्षेत्रं
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रूवि अनंतिमं हवे जोग्गं ।
अवसेसं तु अजोगं सादि अणादी हवे तत्थ || १८७ ||
एकानेक क्षेत्रस्थितरूप्यनंतेक भागो भवेद्योग्यं । अवशेषं त्वयोग्यं साद्यनादि भवेत्तत्र ॥
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पुद्गलद्रव्यमेवं सिद्ध्यति तत्र प्र फ १६ ख इ ६ लब्धं एकक्षेत्रस्य द्रव्यं १६ ख ६ प्र ।
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१६ ख ६ ६ लब्धं अनेकक्षे त्रस्य द्रव्यं १६ ख ६ ।। १८६ ।।
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६ तत्तत्क्षेत्रानुसारितया स्थितं रूपि
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भाग दें, उतना है । अन्तिम भेद समुद्घातकी अपेक्षा लोकप्रमाण है । सो अन्त में से आदिको घटाकर एक मिलानेसे अवगाहनाके समस्त भेद होते हैं । तथापि बहुत जीव घनांगुलके १५ असंख्यातवें भाग प्रमाण अवगाहनाके धारक होने से मुख्यतासे एक क्षेत्रका प्रमाण घनांगुलअसंख्य भाग मात्र कहा है । सो इतने क्षेत्रके बहुत प्रदेश हैं। इससे प्रदेशों की अपेक्षा यही अनेक क्षेत्र है । तथापि विवक्षावश यहाँ इस क्षेत्रको एकक्षेत्र कहा है । और इस क्षेत्रके परिमाणसे हीन शेष लोकाकाशके क्षेत्रको अनेक क्षेत्र कहा है । सो उस-उस क्षेत्र के अनुसार स्थित रूपी पुद्गल द्रव्यका परिमाण इस प्रकार जानना
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जो समस्त लोक में सर्व पुद्गल द्रव्य पाया जाता है तो एक क्षेत्रमें कितना पुद्गल द्रव्य पाया जाता है। ऐसा त्रैराशिक करना । उसमें प्रमाणराशि समस्त लोक, फलराशि पुद्गलद्रव्यका परिमाण, इच्छाराशि एक क्षेत्रका परिमाण । फलसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाण शिसे भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया उतना एक क्षेत्र सम्बन्धी पुद्गल - द्रव्य जानना । तथा इच्छाराशि अनेक क्षेत्र रखनेपर पूर्वोक्त सब विधान करनेसे जो लब्ध२५ राशिका प्रमाण आवे उतना अनेक क्षेत्र सम्बन्धी पुद्गलद्रव्य जानना || १८६ |
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