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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका एयक्खेत्तोगाढं सव्वपदेसेहिं कम्मणो जोग्गं । दि सदूहिं य अणादियं सादियं उभयं ॥ १८५ ॥ एक क्षेत्रावगाढं सव्वं प्रदेशैः कम्र्म्मणो योग्यं । बध्नाति स्वहेतुभिरनादिसाद्युभयं ॥ सूक्ष्मनिगोदशरघनांगुला संख्यातेकभागजघन्यावगाहक्षेत्रमेक क्षेत्र में बुदक्कुमा क्षेत्रावगाहितमं कर्मस्वरूप परिणमनयोग्यमध्युदननादियं सादियनुभयमं पुद्गलद्रव्यमं जीवं सर्व्वात्मप्रवेशंगलिटं मिथ्यादर्शनादिस्व हेतुर्गाळदं बध्नाति कट्टुगुं ॥ एयसरीरोगाहियमेयखेत्तं अणेयखेत्तं तु । अवसेसलोयखेत्तं खेत्तणुसारिट्ठियं रूवि ॥ १८६॥ एकशरीरावगाहितमेक क्षेत्रमनेकक्षेत्रं तु अवशेषलोकक्षेत्रं क्षेत्रानुसारिस्थितं रूपि ॥ एकशरीरावगाहितं एकशरीरविंदमवष्टंभिसल्पट्टाकाशमेकक्षेत्र बुदु । a २०९ = गुल संख्या भागमुपलक्षणमवादी ६ अंते = सुद्धे = ६ वढिहिवे रूवसंजुदे ठाणा । प प a a एंक क्षेत्र विकल्पंग मिति ६ विवदमनेक क्षेत्र मुमेक क्षेत्र मक्कुमं बुदत्थं । तु म प a अकारणमागि १० अवशेषलोक्क्षेत्रं एकक्षेत्रशरीरावगाहितमं घनांगुला संख्यातैकभागमं कळेडुळिद लोकाकाशमनितुम सूक्ष्मनिगोदशरीरं घनाङ्गुलासंख्येयभागं जघन्यावगाहक्षेत्र एकक्षेत्र, तेनावगाहितं कर्मस्वरूपपरिणमनयोग्यं अनादिकं सादिकं उभयं च पुद्गलद्रव्यं जीवः सर्वात्मप्रदेश: मिथ्यादर्शनादिहेतुभिर्बघ्नाति ॥। १८५ ।। एकशरीरेणावष्टब्धाकाशप्रदेशं एकक्षेत्रं तेन घनाङ्गुला संख्यातैकभाग उपलक्षणं ६ तद्विकल्पाः आदी प a ६ अंते = सुद्धे = ६ वड्ढि हिदे रूवसंजुदे ठाणा इत्येतावन्तः ६ विवक्षया अनेकक्षेत्रमध्येकक्षेत्र प प प a a For Private & Personal Use Only 1 सूक्ष्म निगोदियाका शरीर घनांगुलके असंख्यातवें भाग मात्र जघन्य अवगाहनारूप क्षेत्रवाला होता है । उसे एकक्षेत्र कहते हैं । उस एकक्षेत्रमें स्थित जो कर्मरूप परिणमनके योग्य अनादि, सादि और उभयरूप पुद्गल द्रव्य है उसे जीव मिथ्यादर्शन आदिके निमित्तसे अपने सर्व आत्मप्रदेशोंसे बाँधता है || १८५ ।। एक शरीर की अवगाहनासे रोका गया जो आकाशप्रदेश है वह एक क्षेत्र है । इससे एक क्षेत्र घनांगुलके असंख्यातवें भाग प्रमाण कहा है। यद्यपि शरीरकी अवगाहमा जघन्यसे लेकर उत्कृष्ट पर्यन्त होती है । उसका आदि भेद तो घनांगुलको पल्यके असंख्यातर्वे भागका क - २७ Jain Education International १५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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