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गो० कर्मकाण्डे विवरोळ सदृशाः वोरन्नंगळप्पुवु सामानानुभागस्पद्ध'कंगळप्पुवुवेंधुदत्थं । खलु स्फुटमागि प्रशस्ताः अप्रशस्तप्रकृतिगळु नियकांजीरविषहालाहलसदृशाः बेवं कांजीरमु विषमुहालाहलमुमें विवरोळोरन्नंगळप्पुवु खलु स्फुटमागि। सर्वप्रकृतिगळु १२२ । इवरोळ घातिगळु ४७ अघातिगळ ७५ । यीयघातिगळोळु प्रशस्तंगळु :
। ।४२ । अप्रशस्तंगळु ३३ । अप्रशस्तवर्ण
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५ चतुष्कमुटप्पुरिंदमदु गूडि ३७ | अप्र ३७
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इन्तु भगवदहत्परमेश्वर • कर्मकांडप्रकृतिसमुत्कोत्तनं अनुभागबंध परिसमाप्तमादुदु ॥ अनंतरं प्रदेशबंधमं त्रयस्त्रिंशत् ३३ गाथासूत्रंगळिवं पेन्दपरु :
निंबकाजीरविषहलाहलसदृशाः खलु स्फुटम् । सर्वप्रकृतयः १२२, तासु घातिन्यः ४७, अघातिन्यः ७५ । एतासु प्रशस्ता: ४२ अप्रशस्ताः ३३, अप्रशस्तवर्णचतुष्कमस्तीति तन्मिलिते ३७ ।
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नि १० ॥१८४॥ इत्यनुभागबन्धः समाप्तः । अथ प्रदेशबन्धं त्रयस्त्रिशद्गाथासूत्र राह
और अमृत समान होते हैं। जैसे ये अधिक-अधिक मिष्ठ होनेसे सुखदायक हैं वैसे प्रशस्त प्रकृतिके स्पर्धक भी होते हैं और अप्रशस्त प्रकृतियोंके शक्तिके भाग नीम, कांजीर, विष और हालाहलके समान होते हैं, जैसे नीम आदि अधिक-अधिक कटुक होनेसे दुःखदायक होते हैं वैसे ही अप्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग भी होता है। सब प्रकृतियाँ एक सौ बाईस १२२ हैं। उनमें सैंतालीस ४७ घातियाँ हैं और ७५ अघातिया है। पचहत्तरमें-से बयालीस ४२ प्रशस्त हैं। तैंतीस अप्रशस्त हैं। उनमें वर्णादि चार अशुभ भी जोड़नेसे सैंतीस होती हैं। सो प्रशस्त प्रकृति तो गुड़, खाण्ड, शर्करा, अमृतरूप या गुड़, खाण्ड, शर्करारूप या गुड़, खाण्डरूप इस तरह तीन रूप परिणत होती हैं। और अप्रशस्त प्रकृति नीम, कांजीर, विष, हालाहल. रूप या नीम, कांजीर विषरूप या नीम कांजीर इस प्रकार तीन रूप परिणत होती हैं ।।१८४॥
अनुभागबन्ध समाप्त हुआ। आगे तेंतीस गाथाओंसे प्रदेशबन्धको कहते हैं
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