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मिथ्यात्व
मिश्र
सम्यक्त्व
मिथ्यात्व
मिश्र
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तथा शेष दारुके बहुभाग और अस्थि तथा शैलरूप स्पर्धक सर्वघाति मिथ्यात्व प्रकृति
रूप जानना ॥ १८२॥
९ ना १ ख ख ख
विशेषार्थ - पूर्व में कहा था कि बन्ध केवल मिथ्यात्व प्रकृतिका ही होता है । जब किसीको सम्यक्त्वकी प्राप्ति सर्वप्रथम होती है तो मिध्यात्व प्रकृति तीन रूप हो जाती है । उनमें से देशघाती अंश देशघाती सम्यक्त्व प्रकृतिको और सर्वघातीमें से दारुका कुछ भाग जात्यन्तर सर्वघाती मिश्र प्रकृतिको और शेष सब मिध्यात्व रूप होता है । यही कथन ऊपर किया है ।। १८१ ॥
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