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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २०५ बम S ख वा ख मिश्र ल स दा ख ख ख आवरणदेसघादंतरायसंजलणपुरिससत्तरसं । चदुविधभावपरिणदा तिविहा भावा हु सेसाणं ॥१८२॥ आवरणदेशघात्यंतरायसंज्वलनपुरुषसतवश । चतुम्विधभावपरिणताः त्रिविधा भावाः खलु शेषाणां ॥ केवलज्ञानावरणरहितज्ञानावरणचतुष्कमु ४, केवलदर्शनावरणरहितदर्शनावरणत्रितयमुं ३ यो ये प्रकृतिगळावरणमध्यदेशघातिगळे बुवक्कु । मन्तराय अन्तरायपंचकमुं ५, संज्वलन म ५ A दा ख ख दाख अभ 외여 मिष ... दा ख ख ख आवरणेषु देशघातीनि मतिश्रुतावधिमनःपर्ययज्ञानचक्षुरचक्षुरवधिदर्शनावरणानि पञ्चान्तरायाः ज्ञानावरण और दर्शनावरणमें-से देशघाती मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय, ज्ञानावरण और चक्षु, अचक्षु अवधि दर्शनावरण ये सात, पाँच अन्तराय, चार संज्वलन, और पुरुषवेद ये सतरह प्रकृतियाँ शैल, अस्थि, दाम और लता भागरूप परिणत होती हैं। जहाँ शैल भाग नहीं होता वहाँ अस्थि, दारु और लतारूप परिणत होती हैं और जिनमें दारुभाग भी नहीं १० होता उनमें केवल लतारूप ही परिणमन होता है। इस तरह सतरह प्रकृतियाँ चार रूप परिणत होती हैं। शेष प्रकृतियों में से मिश्र और सम्यक्त्व प्रकृतिके बिना समस्त घाति प्रकृतियाँ तीन भागरूप ही परिणत होती हैं। सो केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण, पाँच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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