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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका २०३ गळवु । ततः सव्वं मेले दानन्तबहुभागमादियागि अस्थिशैलभागेगळं सव्वंघातियंक्कुमल्लि । घातिगळोळुत्तरप्रकृतिगळोळु मिथ्यात्वप्रकृतिरो विशेषमं पेदपरः देसोत्ति हवे सम्मं तनो दारू अनंतिमे मिस्सं । सेसा अनंतभागा अत्थिसिलाफड्ढया मिच्छे || १८१ ॥ देशघातिपय्र्यन्तं भवेत्सम्यक्त्वं ततो दानन्तक भागे मिश्र । शेषाः अनन्तभागाः अस्थिशिलास्पर्द्धकानि मिथ्यात्वे ॥ प्रथमोपशमसम्यक्त्वपरिणामदिदं गुणसंक्रमभागहारविंदं बंधविनेकविधमेयप्प सत्वरूपमिथ्यात्वप्रकृतिदेशघाति जात्यंतर सर्व्वघाति सर्व्वघातिभेदविदं "कोटथं" सम्यक्त्वमिश्र मिथ्यात्व. प्रकृतिभेदददं द्विविधमागि माडल्पटुवप्पुदरिवं लताभागमावियागि बादविननंतैकभागपर्य्यन्तमाद O वेशघातिस्पर्द्धकंगळनितुं भवेत्सम्यक्त्वं सम्यक्त्वप्रकृतियक्कुं । शेषवारविननंतबहुभागम वा ख १० ल ननंतखंडगळं माडिवलि एकखंडं वा ख । १ जात्यंत रसबंघातिमिश्रप्रकृतियक्कु । शेषा अनन्तभागाः शेषवारविननन्त बहु भागबहु भागंगळम स्थिशिलास्पर्द्धकंगळं सबंघाति मिध्यात्वप्रकृतियक्कु ख ख अशि । दा ख ख ख दावनन्तबहुभागमादि कृत्वा अस्थिशैलभागेषु सर्वत्र सर्वघातिन्यो भवन्ति ॥ १८० ॥ तासामुत्तर प्रकृतिषु मिथ्यात्वस्य विशेषमाह - लता भागमादि कृत्वा दार्वनन्तेक भाग पर्यन्तानि देशघातिस्पर्धकानि सर्वाणि सम्यक्त्वंप्रकृतिर्भवति, १५ शेषदार्वनन्तबहुभागेषु दा ख अनन्तखण्डीकृतेषु एकखण्डं दा ख १ जात्यंतर सर्व पातिमिश्रप्रकृतिर्भवति । ख ख शेषदावनन्तबहुभागभागाः अस्थिशिलास्पर्षकानि च सर्वषातिमिथ्यात्व प्रकृतिर्भवति दा अशै ॥१८१ ॥ होते हुए भी आत्माका गुण प्रकट रहता है। तथा दारुका अनन्त बहुभागसे लेकर अस्थि और शैलरूप सत्र स्पर्धक सर्वघाती हैं। उनके उदयमें आत्माके गुणका एक अंश भी प्रकट नहीं होता ||१०|| उन कर्मोंकी उत्तर प्रकृतियों में से मिथ्यात्व प्रकृतिके विषय में कहते हैं लता भागसे लेकर दारुके अनन्तर्वे भाग पर्यन्त सब देशघाति स्पर्धक सम्यक्त्व प्रकृतिरूप हैं । दारुके अनन्तर्वे भाग बिना शेष बहुभागके अनन्त खण्ड करें। उनमें से एक खण्ड प्रमाण स्पर्धक जात्यन्तर अर्थात् पृथकू ही जातिकी सर्वघाती मिश्र प्रकृतिरूप हैं । ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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