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________________ १९० गो० कर्मकाण्डै अनंतरमनुभागबंधमं त्रयोविंशतिगाथासूत्रंगलिंदं पेळ्दपरु : नानागुणहानिनिषेकरचना आयुःकर्मसर्वनिषेकस्थितिः ॥१६२॥ चरम-१०० २०० ४०० ८०० १६०० प्रथम-३२०० आयुषो यावती स्थितिस्तावान निषेको भवति । १२८ १४४ २५६ २८८ ५१२ आबाधा इति स्थितिबन्धकारणं समाप्तं । अथानुभागबन्धं त्रयोविंशतिगाथाभिराहसम्बन्धी द्रव्य होता है-५१२।४८०।४४८४१६।३८४१३५२१३२०।२८८। इस दो सौ अठासीमें एक चय घटनेपर दो सौ छप्पन होते हैं । यह प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेक पाँच सौ बारहका आधा है। सो यही द्वितीय गुणहानिका प्रथम निषेक है। यहाँ हानिरूप चयका प्रमाण पूर्वसे आधा अर्थात् सोलह है। सो तीसरी गुणहानिके प्रथम निषेक पर्यन्त सोलह-सोलह घटानेपर २५६।२४०।२२४।२०८।१९२।१७६।१६०११४४ होते हैं। उसमें एक चय घटानेपर एक सौ अठाईस हुए। यह दूसरी गुणहानिके प्रथम निषेक दो सौ छप्पनसे आधा है। सो यह तीसरी गुणहानिका प्रथम निषेक है। यहाँ चयका प्रमाण पूर्वसे भी आधा आठ है। इस १० तरह अन्तकी छठी गुणहानि पर्यन्त सर्वधनका, निषेकोंके द्रव्यका और चयका प्रमाण आधाआधा जानना । इस क्रमसे तरेसठ सौ परमाणु खिरते हैं ॥१६२।। स्थितिबन्धका प्रकरण समाप्त हुआ। आगे तेईस गाथाओंसे अनुभाग बन्धका कथन करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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