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________________ नानागुण हा निनिषेक रचने णाणावरणादि ७ निषेकस्थिति ० ० १६ ० कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका आयुष्य कर्म सर्वनिषेकस्थिति आयुष्यक्के स्वस्थितियेनिजनितुं निषेकमक्कं ० १२८ १४४ ० ० २५६ २८८ O विशे. १ वि २ विशे. ४ इन्तु स्थितिबंधप्रकरणं समाप्तमावुवु ॥ विशे. ८ ० ५१२ || आबाषा ॥ वि. १६ वि. ३२ १८५ हानिः अर्घार्षिक्रमा भवति । १ । २ । ४ । ८ । १६ । ३२ द्रव्यं ६३०० । गुणहानिः ८ । नानागुणहानिः ५ ६ । स्थिति: ४८ । अन्योन्याभ्यस्त राशिः ६४ । चाहिए । आगे प्रत्येक गुणहानिमें आधा-आधा होता जाता है। इस कथनको अंकसंदृष्टि द्वारा कहते हैं विवक्षित कर्मके परमाणु ६३०० तिरसठ सौ | आबाधा बिना स्थितिका प्रमाण अड़तालीस ४८ । एक गुणहानि आठ समय प्रमाण । नाना गुणहानि छह । दो गुणहानि १० सोलह | अन्योन्याभ्यस्त राशि चौंसठ ६४ । प्रथम गुणहानिमें परमाणु बत्तीस सौ ३२०० खिरते हैं । द्वितीयादि गुणहानिमें आधे-आधे खिरते हैं - ३२०० १६००/८०० ४००/२००/१०० | एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिका भाग सर्वद्रव्य में देने पर अन्तिम गुणहानिके द्रव्यका परिमाण आता है। उससे दूना दूना द्रव्य प्रथम गुणहानि पर्यन्त जानना । सो प्रथम गुणहानिका सर्वद्रव्य बत्तीस सौ । उसमें प्रथम गुणहानिके गच्छके प्रमाण आठसे भाग देनेपर मध्यधन १५ चार सौ आता है । एक कम गच्छका आधा प्रमाण साढ़े तीनको निषेक भागहार सोलह मेंसे घटाने पर साढ़े बारह रहे । उस साढ़े बारहका भाग मध्यधनमें देनेपर बत्तीस आये । वही चय जानना । उसको दो गुणहानि सोलहसे गुणा करनेपर पाँच सौ बारह हुए । यही प्रथम निषेक सम्बन्धी द्रव्यका प्रमाण है । उसमें एक-एक चय घटानेपर द्वितीयादि निषेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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