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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१८५ भोगभूमिजग्गसंख्यातवर्षायुष्यंगळप्पुरिदमेतु पूर्वकोटिवर्षत्रिभागमुत्कृष्टाबाधयक्कु दोडे देवनारकर्ग स्वस्थितिषण्मासावसानशेषमावळिक्कं तत्रिभागमुत्कृष्टाबाधयक्कुं । भोगभूमिजगें स्वस्थितिनवमासावशेषमादबळिक्कं तत्रिभागमुत्कृष्टाबाधयक्कुमदु कारणदिव कर्मभूमितिय॑ग्मनुष्यरुगळ्गे पूवंकोटिवर्षत्रिभागमुत्कृष्टाबाधेयक्कुमदु मोदल्गोंडु असंक्षेपाद्धावसानमावाबाधाविकल्पंगळोळ देवनारकभोगभूमिजरुगळ्गाबाधेयरियल्पडुगुमसंक्षेपाढे यावेडयोळे बोडे अष्टापकर्ष- ५ गळोळेल्लियुमायुबंधमागदे भुज्यमानायुष्यमन्तर्मुहूर्तावशेषमागुत्तं विरलु उत्तरभवायुष्यं मुन्नमेयंतम्र्मुहर्तमात्रसमयप्रबद्धंगळ बंधं (बद्धं ) निष्ठापिसल्पडुगुं। केळंबराचार्यरुगळावल्यसंख्यातेकभागमसंक्षेपावेयवशेषमागुत्तिरलुत्तर भवायुष्यं निष्ठापिसल्पडुगुमेंबर । ई येरडुं प्रवाह्योपवेशंगळ. पुरिनंगीकृतंगळु। असंक्षेपा युमदरिनन्तम्मुहूर्तमा पक्षदोळु जघन्यमक्कुमुत्कृष्टांतर्मुहूर्त समयोनमुहूर्तमेयेवरिउदु
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आयुराबाषा
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वायुःकर्मण एवमेव भवति न च स्थितिप्रतिभागेन । तहि असंख्यातवर्षायुष्काणां त्रिभागे उत्कृष्टा कथं नोक्ता ? इति तन्न, देवनारकाणां स्वस्थिती षण्मासेषु भोगभूमिजानां नवमासेषु च अवशिष्टेषु त्रिभागेन आयुबन्धसंभवात् । यद्यष्टापकर्षेषु क्वचिन्नायुर्बद्धं तदावल्यसंख्येयभागमात्रायाः समयोनमुहूर्तमात्राया वा असंक्षेपाडायाः प्रागेवोत्तरभवायुरन्तर्मुहूर्तमात्र समयप्रबद्वान् बद्ध्वा निष्ठापयति । एतौ द्वावपि पक्षी प्रवाह्योपदेशत्वात् अङ्गी
शंका-असंख्यात वर्षकी जिनकी आयु है उनका त्रिभाग प्रमाण आबाधा क्यों नहीं १५
कही?
समाधान-क्योंकि देव और नारकियोंके तो अपनी स्थितिमें छह मास और भोगभूमियोंमें नौ मास शेष रहनेपर उसके त्रिभागमें आयुका बन्ध होता है। और कर्मभूमिया मनुष्य और तियंचोंमें अपनी पूर्ण आयुके त्रिभागमै आयुबन्ध होता है। कर्मभूमियोंकी उत्कृष्ट स्थिति कोटि पूर्व वर्ष प्रमाण है। इससे उसीका त्रिभाग उत्कृष्ट आबाधाकाल कहा है। सो त्रिभागसे आठ अपकर्षोंमें आयुबन्ध होता है। यदि कदाचित् किसी भी अपकर्षमें आयुका बन्ध न हो तो किसी आचार्यके मतसे तो आवलीका असंख्यातवाँ भाग प्रमाण और किसी आचार्यके मतसे एक समय कम मुहूर्त प्रमाण आयुके शेष रहनेसे पहले ही उत्तर भवकी आयुकर्मके अन्तर्मुहूर्तकाल प्रमाण समय प्रबद्धोंका बन्ध करके निष्ठापन करता है। ये दोनों मत आचार्य परम्पराका उपदेश होनेसे स्वीकार किये हैं ॥१५८॥
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