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________________ गो० कर्मकाण्डे लब्धस्थिति ९२५९२५९२ ६४ प्रमाण । सा १। को २। फ आवाषा। १०८००००। इ १०८ ९२५९२५९२। ६४ लब्धं मुहूर्त १।प्र। सा ७० । को २ । फ आबाधा व ७००० । इ सा १ । १०८ लग्धमाबांधे। उच्छ्वा १ आयुष्यकाबाधेयं पेळदपरु : पुव्वाणं कोडितिभागादासखेप अद्धवो त्ति हवे । आउस्स य आवाहा ॥ द्विदिपडिभागमाउस्स ॥१५८॥ पूर्वाणां कोटित्रिभागादासंक्षेपाता पर्यन्तं भवेदायुष्यस्य चाबाधा न स्थितिप्रतिभाग मायुषः॥ आयुष्कर्मक्के पूर्वकोटिवषंगळ त्रिभागमुत्कृष्टाबाधेयक्कुं । जघन्यमन्तम्मुहूर्तमकुं। अथवा पक्षांतरविंदमसंक्षेपा यक्कुमऽसंक्षेपार्द्ध एंबुदाउदोडे-न विद्यते अस्मादन्यः संक्षेपः असंक्षेपः स घासावखा च असंक्षेपाडा येंदावल्यसंख्यातेकभागमेंदु पेवरा पक्षांतरमनंगीकरिसि पेळल्पटुहु । आयुष्यकर्मक्की प्रकारदिंदमाबायल्लदे स्थितिप्रतिभागदिदमाबाधेयिल्ल। देवनारक६४ प्र-सा १ को २। फ-मु १०८०००० । इ ९२५९२५९२ । ६४ लब्धो मुहूर्तः १ । प्र-सा ७० को २ । १०८ फ अबाधा ७००० । इ सा १ लब्धं आबाधा उच्छ्वासः १ ॥१५७॥ आयुष आह १०८ बायुःकर्मण उत्कृष्टाबाधा पूर्वकोटिवर्षत्रिभागो भवति जघन्योऽन्तर्मुहूर्तो वा पक्षान्तरेण असंक्षेपाता १५ वा भवति । न विद्यते अस्मादन्यः संक्षेपः असंक्षेपः, स चासो अद्धा च असंक्षेपाचा आवल्यसंख्येयभागमात्रत्वात् । मुहूर्त आबाधा कितनी स्थितिको होती है। ऐसा राशिक करनेपर प्रमाणराशि दस लाख अस्सी हजार महत, फलराशि एक कोडाकोडी सागर, इच्छाराशि एक महत। सो फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणराशिसे भाग देनेपर नौ कोटि पच्चीस लाख बानबे हजार पाँच सौ बानवे सागर और एक सागरके एक सौ आठ भागोंमें-से चौंसठ भाग स्थितिकी एक २० मुहूर्त आवाधा हुई। तथा प्रमाणराशि एक कोडाकोड़ी सागर, फलराशि दस लाख अस्सी हजार मुहूर्त, इच्छाराशि नौ कोटि पच्चीस लाख बानबे हजार पाँच सौ बानबे और एक सौ आठ भागों में से चौंसठ भाग प्रमाण सागर । ऐसा करनेपर आबाधा एक मुहूर्त होती है। तथा प्रमाणराशि सत्तर कोडाकोड़ी सागर, फलराशि सात हजार वर्ष, इच्छाराशि एक सागर। ऐसा करनेपर फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध साधिक २५ संख्यात उच्छ्वास आया वही एक सागरकी स्थितिमें आबाधा काल जानना ॥१५७॥ आयुकर्मकी आवाधा कहते हैं आयुकर्मकी उत्कृष्ट आबाधा एक कोटि पूर्व वर्षका तीसरा भाग होती है। जघन्य आवाधा अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। अन्य किसी आचार्यके मतसे 'आसंक्षेपाद्धा' प्रमाण है। जिससे थोड़ा काल दूसरा नहीं है उसे आसंक्षेपाद्धा कहते हैं सो यह काल आवलीका असंख्याता भाग प्रमाण है। आयुकर्मकी आबाधा इसी प्रकार है अन्य कर्मोकी तरह स्थितिके प्रतिभागके अनुसार नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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