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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १७९ बादरैकेंद्रियापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधायामप्रमाणमक्कुं सा मी प्रकारदिदं शेषसूक्ष्मापर्याप्तो ५२२४ ३४३ स्कृष्टजघन्यस्थितिबंधद्वयबादरापर्याप्तजघन्यसूक्ष्मपर्याप्त जघन्य बादरपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पंगळु यथाक्रमदिवमिनितप्पुवु । सा १ सा १ । सा १।१ सा ११ सा १ । अपवर्तितमन्त्यमिदु -५२३१ । १ प२।४५।१ प ३४३ । १ प२२८ प २२९ ३४३ ३ ४३ ३४३ । |०३४३ | ३४३ । सा १) ई प्रकारदिदं शेषद्वींद्रियादिगळ पर्याप्तोत्कृष्टजघन्यस्थित्यामंगळुमवराबाधाया- ५ मेंगलं तरल्पडुवुवु ॥ अनंतरं जघन्यस्थितिबंधस्वामिगळं पेन्दपरु सत्तरसपंचतित्थाहाराणं सुहुमबादरोऽपुग्यो । छन्वेगुन्वमसण्णी जहण्णमाऊण सण्णी वा ॥१५१॥ सप्तदश पंच तीर्थाहाराणां सूक्ष्मबादरापूर्वाः । षड्वैगूर्वमसंज्ञो जघन्यमायुषां संज्ञी वा ॥ १० ज्ञानावरणपंचक, वर्शनावरणचतुष्कमुमंतरायपंचकमुं यशस्कोत्तिनाममुच्चैग्गोत्रमुं सातावेदनीयमुमबी १७ सप्तदश प्रकृतिगळ्गे जघन्यस्थितिबंधमं सूक्ष्मसांपरायं माळ्कुं। पुरुषवेदमुं एतावन्तः-२ ११। एतान स्थितिविकल्पवत् संख्यातेन भक्त्वा भक्त्वा बहभागं बहभागं एकभागं स्वस्वस्थितिविकल्पानामधः संस्थाप्य तत्तल्लब्धस्य चरमं चरममाबाधायामं निजस्थितिविकल्पायामवत साधयेत् ॥१५०॥ अथ जघन्यस्थितिबन्धस्वामिभेदानाह पञ्चज्ञानावरणचतुर्दर्शनावरणपञ्चान्तराययशस्कीयुच्चैर्गोत्रसातवेदनीयानां जघन्यस्थिति सूक्ष्मसाम्पराय देकर बहुभाग, बहुभाग और एक भाग प्रमाण आवाधाके भेद तीनों अन्तरालोंमें जानना। तथा जैसे स्थितिके भेदोंको घटा-घटाकर स्थितिका प्रमाण कहा वैसे ही यहाँ आबाधाके भेदोंको घटा-घटाकर उस-उस स्थिति सम्बन्धी आबाधाका प्रमाण जानना। इस प्रकार संज्ञी पञ्चेन्द्रियके सम्बन्ध में विशेष कथन जानना ॥१५०।। २० आगे जघन्य स्थितिबन्ध करनेवाले जीवोंको कहते हैं पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, पाँच अन्तराय, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और सातावेदनीय इन सतरह प्रकृतियोंका जघन्य स्थितिबन्ध सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थानवी जीव ही १. ब तत्तच्चरममाबाधायामं साधयेत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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