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गो० कर्मकाण्डे ५ १९६ इदरोळेकरूपं कळवुस्कृष्टस्थितिबंधविकल्पदोळु कळेदोर्ड सूक्ष्मैकेंद्रिय
मिदु
३४३
पर्याप्तोत्कृष्टस्थित्यायामप्रमाणमक्कु सा मा स्थित्यायामकाबाधेयं रूपोनमप्पी याबाधावि
५९६ कल्पंगळनुत्कृष्टाबाधाविकल्पोळु कळेद शेषमाबाधायाममक्कुं।
__ मुंदयुमी प्रकारदिदं तंतम्माबाधायाममरियल्पडुगुं मत्तमुत्कृष्टस्थितिबंधायाममनुत्कृष्टाबाधा५ यामदिदं भागिसिद लब्धमात्राबाधाकांडकमनिवं ५ ११ उत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पं मोदल्गोंडु बादरापर्याप्नोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पपर्थ्यन्तमिई स्थितिविकल्पंगळाबाधाविकल्पंगळिवरिदं ।
२। २२४ गुणिसिदुवनिदं प ११ २॥ २२४ भाज्यभागहाररूपदिनिवळिद्वयमं सरिगळेवपत्तितशेषमिदु ५२२४ इदरोळेकरूपं कळेदुत्कृष्टस्थितिबंधविकल्पदोळु कळवोडे
a ३४३
२१।०३४३
३४३
एतेषु चरमस्य संज्ञिपर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धस्यायामः एतावद्भिरेव समययूनसंज्यपर्याप्तकजघन्यस्थित्या१० याममात्रो भवति सा ७० को २ स तु अन्तःकोटाकोटिसागरोपमात्र एव सा अन्तः को २ ।
तथा 'सगठिदिठाणं व आबाहा' संज्ञिनो मिथ्यात्वाबाधाविकल्पा अपि 'सगठिदिठाणं व' निजस्थितिविकल्पवद्भवन्ति । तद्यथा-तन्मिथ्यात्वाबाधा उत्कृष्टा सप्तसहस्रवर्षाणि इति त्रिसंख्यातगुणितावलिमात्री २१११ जघन्या च समयोनमुहूर्तः इति द्विसंख्यातगुणितावलिमात्री २११ तथानीतसमयोत्तरतद्विकल्पा
रहा था उतना प्रमाण मात्र संज्ञी अपर्याप्तकके जघन्यसे एक समय कम अनन्तर स्थिति१५ बन्धसे लेकर संज्ञी पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेदोंका प्रमाण है। इस
प्रमाणको संज्ञी अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धमें-से घटानेपर संज्ञी पर्याप्तकका जघन्य स्थितिबन्ध होता है । सो यह प्रमाण अन्तःकोटाकोटी सागर जानना। यह स्थितिका कथन हुआ।
अब आबाधाका कथन करते हैं। आबाधाका कथन भी स्थितिस्थानवत् जानना। २० सो संज्ञीके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधा सात हजार वर्ष प्रमाण है । सो तीन बार संख्यातसे
गुणित आवली प्रमाण है। और जघन्य आबाधा एक समय कम एक मुहूर्त प्रमाण है। सो दो बार संख्यातसे गुणित आवली प्रमाण है । सो उत्कृष्ट में-से जघन्यको घटाकर उसे एकसे भाग देनेपर जो प्रमाण हो उसमें एक मिलानेपर आबाधाके सब भेदोंका प्रमाण होता है।
जैसे स्थितिके भेदोंमें संख्यातका भाग दे-देकर बहुभाग, बहुभाग और एक भाग प्रमाण२५ स्थितिके भेद तीनों अन्तरालोंमें कहे, उसी प्रकार आबाधाके सब भेदोंमें संख्यातसे भाग दे
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