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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका १६७ स्थितिबंधविकल्पमुमन्ते । सूक्ष्मैकेंद्रियपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधविकल्पं मोदल्गोंडेनितु स्थितिबंध सा २५ ४ पुन: प्र-श ७ फ बिपइश १ इति द्वीन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्टानन्तरस्थितिबन्धमादि कृत्वा द्वोन्द्रियापर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवन्ति प १ एतेषु चरमस्य द्वीन्द्रिया ११११७ पर्याप्तकजघन्यस्थितिबन्धस्यायामः एतावद्भिरेव समयन्यूनद्वीन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्टस्थित्यायाममात्रो भवति सा २५ ५ पुनः प्र-श ७ फ-बिप इश २ इति द्वीन्द्रियापर्याप्तजघन्यानन्तरस्थिति- ५ प बन्धमादि कृत्वा द्वीन्द्रियपर्याप्तकजधन्यस्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवन्ति प २ एतेषु चरमस्य ११११७ द्वीन्द्रियपर्याप्तजघन्यस्थितिबन्धस्यायाम एतावद्भिरेव समयन्यूनद्वीन्द्रियापर्याप्तकजघन्यस्थित्यायाममात्र: सा २५ । ७ स च ईदृश एव भवति सा २५ । तथा द्वीन्द्रियस्य मिथ्यात्वाबाधा उत्कृष्टा प प्रमाण होता है। पुनः प्रमाणराशि सात शलाका, फलराशि दो-इन्द्रियके मिथ्यात्वकी स्थितिके सब भेद, इच्छाराशि एक शलाका। फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देने- १. . पर जो लब्धराशिका प्रमाण आवे उतने दो-इन्द्रिय अपयोप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धके अन्तर भेदसे लगाकर दो-इन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं। इन भेद प्रमाण समयोंको दो-इन्द्रिय अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्धमें-से घटानेपर दोइन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य स्थितिका प्रमाण होता है। पुनः प्रमाणराशि सात शलाका, फलराशि दो-इन्द्रियके मिथ्यात्वके सब स्थितिके भेदोंका प्रमाण, इच्छाराशि दो शलाका। १५ फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया उतने दोइन्द्रिय अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धके अनन्तर स्थितिबन्धसे लगाकर दो-इन्द्रिय पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं। इन भेदप्रमाण समयोंको दो-इन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य स्थितिबन्धमें घटानेपर दो-इन्द्रिय पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धका प्रमाण होता है। आगे आबाधाका प्रमाण कहते हैं। दो-इन्द्रिय जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सम्बन्धी उत्कृष्ट आबाधा चार बार संख्यातसे भाजित आवली अधिक संख्यात आवली प्रमाण अन्तर्मुहूर्त पच्चीस प्रमाण है। जघन्य आबाधा उस अधिक बिना केवल पच्चीस अन्तर्मुहूर्त है। उत्कृष्टमें-से जघन्यको घटाकर उसमें एकसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उसमें एक जोड़नेपर आवाधाके भेदोंका प्रमाण होता है। यहाँ भी पूर्वकी तरह तीन त्रैराशिक करना चाहिए। सो प्रमाणराशि और २५ इच्छाराशि तो स्थितिबन्धके कथनके समान ही जानना। फलराशि दो-इन्द्रियके मिथ्यात्वकी १. ब रूपोनातीतविकल्पमात्रसमय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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