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________________ ५ १६६ गो० कर्मकाण्डे जघन्य स्थितिबंधविकल्प मोवल्गो डेनितु स्थितिबंधविकल्पंगळं नडेवु सूक्ष्मैकेंद्रियपय्र्याप्तजघन्य १५ वाप उ २ ३० a २१ सूप उ २ a २१ २ १९६ ० ३४३ बा अ उ २ a २१ २ २२४ ० ३४३ सू अ उ २ प Jain Education International a २१ २ २२८ ० ३४३ सू अज २ 2 २१ २ २२९ a ३४३ ० २१ a २ २४५ २ २१ a ३४३ ० ३४३ ३४३ अथ द्वीन्द्रियस्य यथा तन्मिथ्यात्वस्थितिरुत्कृष्टा पञ्चविंशतिसागरोपममात्री सा २५ जघन्या च चतु:संख्यातभक्तरूपोनपत्योनतदुत्कृष्टमात्री सा २५ तथानीत समयोत्तरविकल्पा एतावन्तः प तत्र ๆ ๆ ๆ ๆ > ११११ एक द्विचतुःशलाकानां मिलित्वा सप्तसंख्यानां प्र-श ७ यद्येतावन्त : फ-विप ง ว ง ง १० द्वीन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्ट स्थितिबन्धपर्यन्तं विकल्पा लब्धा भवति प वा अ ज २ २१ २ २३१ ० ३४३ सूप ज २ वा पज २ तदा चतसृणां शलाकानां इ श ४ कति ? इति द्वन्द्रियपर्याप्तकोत्कृष्टस्थितिबन्धमादिं कृत्वा दो-इन्द्रिय जीवके मिध्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागर है । जघन्य स्थिति चार बार संख्यातसे भाजित एक हीन पल्यके प्रमाणको उत्कृष्ट स्थिति में से घटानेपर जो शेष रहे उतनी है । उत्कृष्ट में से जघन्यको घटाकर जो शेष रहे उसमें एकसे भाग देकर तथा एक जोड़ने पर जो प्रमाण रहे उतने द्वीन्द्रिय जीवके मिध्यात्वकी सब स्थितिके भेद होते हैं । दो-इन्द्रियके चार स्थानोंके तीन अन्तरालों में एक, दो और चार शलाका प्रमाण हैं । इनका २० जोड़ सात होता है । यदि सात शलाकाओं में दो-इन्द्रिय जीवके जघन्यसे लेकर उत्कृष्टस्थितिपर्यन्त मिथ्यात्वकी स्थिति के सब भेद चार बार संख्यातसे भाजित पल्य प्रमाण होते हैं तो चार शलाकाओं में कितने भेद होंगे। ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि शलाका सात, फलराशि दोइन्द्रियके मिध्यात्वकी स्थितिके भेदोंका प्रमाण, इच्छाराशि चार शलाका । फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्ध आया उतने द्वीन्द्रिय पर्याप्त कके उत्कृष्ट स्थितिबन्धसे लेकर दो-इन्द्रिय अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थिति के भेद होते हैं । इन भेदोंमें से एक घटानेपर जो शेष रहे उतने समय द्वीद्रिय पर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागर में से घटानेपर दो-इन्द्रिय अपर्याप्त के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका २५ ११११७ ४ एतेषु चरमस्य द्वीन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्टस्थितिबन्धस्यायामो रूपोनैरेतावद्भिः समयैर्न्यनद्वीन्द्रियपर्याप्तकोत्कृष्टस्थित्यायाममात्रो भवति प्रमाण कहा उस-उस सम्बन्धी आबाधाका प्रमाण जानना । इस तरह एकेन्द्रिय जीवोंके स्थितिबन्ध और आबाधा के भेदोंका तथा कालका प्रमाण जानना । अब दो-इन्द्रिय जीवके कहते हैं For Private & Personal Use Only १. एतस्याः संदृष्टेराकारः श्रीपण्डितटोडरमल्लजीकैः, अपरथैव प्रतिपादितः तत्र रचनायां वैलक्षण्येऽपि नार्थे वैलक्षण्यं । स चाकारोऽत्र १४९ तम संख्यांकितगाथायाष्टिपण्या: आबाधारचनेत्यंशे, कर्मकाण्डसंदृष्टौ च लिखित: । www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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