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________________ गो० कर्मकाण्डे सूक्ष्मैकेंद्रियापर्याप्तजघन्यस्थितिविकल्पमुमन्ते सूक्ष्मैके द्वियापर्य्याप्तजघन्यस्थितिविकल्पं मोदल्गो १६४ ३४३ | फबिप इश २ इति सूक्ष्मापर्याप्त कजघन्यानन्तरस्थितिबन्धमादि कृत्वा बादरापर्याप्तकजघन्य მ एतेषु चरमस्य बादरापर्याप्त कजघन्य स्थितिबन्धस्यायामः स्थितिपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवन्ति प २ ० ३४३ एतावद्भिरेव समय: न्यून सूक्ष्मापर्याप्तकजघन्य स्थित्यायाममात्रो भवति । सा 612 प २३१ ० ३४३ ५३४३ | फबिपइश १४ इति बादरापर्याप्तजघन्यानन्तरस्थितिबन्धमादि कृत्वा सूक्ष्मपर्याप्त कजघन्य स्थिति a एतेषु चरमस्य सूक्ष्मपर्याप्त कजघन्यस्थितिबन्धस्यायामः एत बन्धपर्यन्त विकल्पा लब्धा भवन्ति - १४ a ३४३ वद्भिरेव समयेन्यूनबादरापर्याप्तकजघन्य स्थित्यायाममात्रो भवति सा 613 Jain Education International :) २४५ पुनः प्र-श a ३४३ इश ९८ इति सूक्ष्मपर्याप्त कजघन्यानन्तर स्थितिबन्धमादि कृत्वा बादरपर्याप्त कजघन्य स्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवन्ति प ९८ एतेषु चरमस्य बादरपर्याप्त कजघन्यस्थितिबन्धस्यायामः एतावद्भिरेव ० ३४३ For Private & Personal Use Only पुनः प्रश ३४३ फ बिप a १० राशि एक शलाका । फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया उतने सूक्ष्म अपर्याप्त कके उत्कृष्ट से अनन्तर स्थितिबन्धसे लेकर सूक्ष्म अपर्याप्त कके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं। इन भेद प्रमाण समयको सूक्ष्म अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध में से घटानेपर सूक्ष्म अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धका प्रमाण होता है । पुनः प्रमाणराशि तीन सौ तेतालीस, फलराशि एकेन्द्रियके मिध्यात्वकी १५ उत्कृष्ट स्थिति सब भेद, इच्छाराशि दो शलाका । फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाण राशि से भाग देने पर जो प्रमाण आवे उतने सूक्ष्म अपर्याप्तकके जघन्यस्थितिबन्धसे अनन्तर स्थितिबन्धसे लेकर बादर अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं । इन भेदप्रमाण] समयोंको सूक्ष्म अपर्याप्तककी जघन्यस्थिति में घटानेपर बादर अपर्याप्तककी जघन्यस्थितिका प्रमाण होता है । पुनः प्रमाणराशि तीन सौ तैंतालीस, फलराशि एकेन्द्रिय के २० मिथ्यात्व की स्थिति के सब भेद, इच्छाराशि शलाका चौदह । फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणसे भाग देनेपर जो लब्ध आया उतने बादर अपर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्धके अनन्तर स्थिति भेद से लेकर सूक्ष्म पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद हैं । इन भेद प्रमाण समयोंको बादर अपर्याप्तके जघन्यस्थितिबन्ध में घटानेपर सूक्ष्म पर्याप्तक के जघन्य स्थितिबन्धका प्रमाण होता है । प्रमाणराशि तीन सौ तैंतालीस शलाका, फलराशि एकेन्द्रिय के २५ मिथ्यात्वकी सब स्थितिके भेद, इच्छाराशि शलाका अठानबे । फलसे इच्छाको गुणा करके प्रमाणराशि से भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतने सूक्ष्म अपर्याप्तके जघन्य स्थितिबन्ध के अनन्तर स्थितिबन्ध से लेकर बादर पर्याप्तकके जघन्य स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं । www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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