SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका बादरैकेंद्रिय।पर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधविकल्प बाद केंद्रियार्थ्यातोत्कृष्ट स्थितिबंधविकल्पं मोदगोंडु समयोनक्रमदिदमेनितु स्थितिबंधविकल्पंगळं नडदु । सूक्ष्मैकंद्रियार्थ्याप्तोत्कष्टस्थितिबंधविकल्पमुमन्ते सूक्ष्मपर्याप्तोत्कृष्ट स्थितिबंधविकल्पं मोदल्गो डेनितुस्थितिविकल्पंगळं नदु स्थित्यायाममात्रो भवति सा भवति सा 613 0 प १९६, a ३४३ नंतरस्थितिबन्धमादि कृत्वा बादरापर्याप्तकोत्कृष्टस्थितिबन्धपर्यन्त विकल्पा लब्धा भवन्ति प २८ एतेषु चरमस्य a ३४३ बादरापर्याप्तकोत्कृष्टस्थितिबन्धस्य आयाम: एतावद्भिरेव समयैः न्यूनसूक्ष्मपर्याप्तकोत्कृष्टस्थित्यायाममात्रो पुनः प्र-श ३४३ | फ बिप इश ४ इति बादरापर्याप्तकोत्कृष्टानन्तरस्थितिबन्धमादि a पुनः प्र-श ३४३फ बिप इ-श २८ । इति सूक्ष्मपर्याप्तकोत्कृष्टा a प २२४, a ३४३ . कृत्वा सूक्ष्मापर्याप्तकोत्कृष्ट स्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवन्ति प ४ एतेषु चरमस्य सूक्ष्मापर्याप्त कोत्कृष्टस्थितिबन्धस्य आयाम एतावद्भिरेव समयैर्च्यूनबादरापर्याप्तकोत्कृष्टस्थित्यायाममात्रो भवति । सा ० ३४३ Jain Education International १६३ ज् a ३४३ पुनः प्र - ३४३ । फ बिप इश १ इति सूक्ष्मापर्याप्तकोत्कृष्टानन्तरस्थितिबन्धमादि कृत्वा सूक्ष्मा - १० a पर्याप्त कजघन्यस्थितिबन्धपर्यन्तविकल्पा लब्धा भवति प १ एतेषु चरमस्य सूक्ष्मापर्याप्त कजघन्य स्थिति० ३४३ बन्धस्यायामः एतावद्भिरेव समयैर्न्यनसूक्ष्मापर्याप्तकोत्कृष्टस्थित्यायाममात्रो भवति सा पुनः प्र-श 2 For Private & Personal Use Only २२९ a ३४३ प २२८ प्रमाण, इच्छाराशि अठाईस शलाका। फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाणका भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया उतने सूक्ष्म पर्याप्तकके उत्कृष्ट के अनन्तरवर्ती स्थितिबन्धसे लेकर बादर अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं । इन स्थिति भेदोंके प्रमाणको सूक्ष्म पर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति में से घटानेपर बादर अपर्याप्तककी उत्कृष्टस्थितिका प्रमाण होता है । पुनः प्रमाणराशि तीन सौ तेंतालीस, फलराशि एकेन्द्रियकी मिथ्यात्व की स्थिति के सब भेदोंका प्रमाण, इच्छाराशि चार शलाका । सो फलको इच्छासे गुणा करके प्रमाण शिसे भाग देनेपर जो लब्धराशिका प्रमाण आया वह बादर अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध के अनन्तर स्थितिबन्धसे लेकर सूक्ष्म अपर्याप्तकके उत्कृष्ट स्थितिबन्ध पर्यन्त स्थितिके भेद होते हैं । इन भेदोंका जितना प्रमाण है उतने समय बादर अपर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति में से घटानेपर सूक्ष्म अपर्याप्त के उत्कृष्ट स्थितिबन्धका प्रमाण होता है । पुनः प्रमाणराशि तीन सौ तेंतालीस, फलराशि एकेन्द्रियके मिध्यात्वकी स्थितिके सब भेद, इच्छा ५ १५ २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy