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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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मनिदं प रूपोनपल्यासंख्यातमनुत्कृष्ट स्थितियोळकळदोर्ड मुंपेन्देकेंद्रियमिथ्यादृष्टिजीवनु मिथ्यात्वप्रकृतिगे कटुव जघन्यस्थितिबंधप्रमाणमक्कु सा १२ ई जघन्यस्थितियनावियं माडि
उत्कृष्ट स्थितियनन्तमं माडि आदी अन्ते सुद्धे एंदु आदियनन्तदोळकळेदोडे शेषमिदु। प इदं
वृद्धियिदं । भागिसिदोडे तावन्मात्रमेयक्कु ६ मल्लि एकरूपं कूडिदोर्ड केंद्रियजीवं मित्यात्वप्रकृतिगे माळप सर्वस्थितिविकल्पप्रमाणमक्कु ५। द्वींद्रियजीवंगे मिथ्यात्वप्रकृत्युत्कृष्टाबाधै ५
साधिकपंचविंशत्यंतमहत्तंगळप्पुवु। ११११ अपत्तितमप्पिदरि २१२५ दमुत्कृष्टस्थितियं
२१२५ भागिसिदोडाबाधाकांडकप्रमाणमक्कुं सा २५ अपत्तिसिदोडिदु सा ई आबाधाकांडकम
२१। २५
२१
तस्य मिथ्यात्वसर्वस्थितिविकल्पा भवन्ति ५ । द्वीन्द्रियस्य मिथ्यात्वोत्कृष्टाबाधा साधिकपञ्चविंशत्यंतर्मुहर्ता
a
२
अपवर्त्य २ १.२५ तया भक्ता उत्कृष्टस्थितिः आबाधाकाण्डकं भवति सा २५ । तेन अप
२१२५
२१ २५
रूपोनेन १०
वर्तितेन सा आबाधाविकल्प २ गणितेन सा २
११११ २११४
अपवर्तितेन-प
११११
--.
उत्कृष्टस्थिति: मिथ्यात्वजघन्यस्थितिः सा २५ भवति । तां च उत्कृष्टस्थितावपनोय शेषेप
११११
घटानेषर जो शेष रहे उसमेंसे एकसे भाग देनेपर उतना ही रहा। उसमें एक जोड़नेपर एकेन्द्रिय जीवकी मिथ्यात्वकी स्थितिके सब भेदोंका प्रमाण होता है। अर्थात् जघन्यसे लेकर एक-एक समय बढ़ता उत्कृष्ट पर्यन्त एकेन्द्रियके मिथ्यात्वकी स्थितिके इतने भेद होते हैं। इसी प्रकार दो इन्द्रिय जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधाका प्रमाण चार बार १५ संख्यातसे भाजित आवली मात्र अधिक पच्चीस अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। यह आबाधा भी अन्तमुहूत प्रमाण ही है, तथापि एकेन्द्रिय जीव की आबाधाके अन्तर्मुहूर्तसे पच्चीस गुणा है, क्योंकि दो इन्द्रियके एकेन्द्रियसे पच्चीस गुना स्थितिबन्ध होता है। सो यहाँ एकेन्द्रियकी
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