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________________ १४८ गो० कर्मकाण्डे नाबाधाविकल्पंगळिवरिदं २ गुणिसिदोडिदु सा २ इदनपत्तिसिदोडिदु ५१ इद ११११ २१ ११११ ११११ रोळेकरूपं कळेदोडिदु ५ इदनुत्कृष्टस्थितिबंधप्रमाणदोळु कळंदोडिदु सा २५ । द्वींद्रियजीवं '११११ १११२ मिथ्यात्वप्रकृतिगे माळ्प जघन्यस्थितिबंधप्रमा २१ । २५ णमक्कु-। मी जघन्यस्थितियनुत्कृष्ट स्थितियोळकळेदोडे शेषमिदु प वृद्धियिदं भागिसि येकरूपं कूडिदोर्ड द्वींद्रियजीवंगे मिथ्यात्वप्रकृतिसर्वस्थितिविकल्पंगळप्पुवु ५१ त्रींद्रिय जीवंगे मिथ्यात्वप्रकृतिस्थित्युत्कृष्टाबाधे ११११ ११११ २ २५.५० यिदु ११ संख्यातत्रितयभक्तावल्यभ्यधिकपंचाशदन्तर्मुहूर्तप्रमादिदं भागिसल्पटुत्कृष्टस्थितियाबाधाकांडकमक्कुमिदं सा ५० अपत्तितमिदु सा १ इदनाबाधाविकल्पंगळिदं गुणि २१। ५० रूपाधिकीकृते तस्य मिथ्यात्वसर्वस्थितिविकल्पा भवन्ति प त्रीन्द्रियस्य मिथ्यात्वोत्कृष्टाबाधा २ २१ २१५० संख्यातत्रितयभक्तावल्यधिकपञ्चाशदन्तर्मुहर्ता । तया भक्ता उत्कृष्टस्थितिः आबाधाकाण्डकं भवति सा ५० तेन २१५० १० अपवर्तितेन सा आबाधाविकल्पगणितेन सा २ अपवर्तितेन प रूपोनेन प २११११ अपेक्षा पच्चीस अन्तर्मुहूर्त कहे हैं, आगे भी ऐसा ही जानना। इस तरह द्वीन्द्रियके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधा साधिक पच्चीस अन्तर्मुहूर्त है। उससे द्वीन्द्रियके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरमें भाग देनेपर आवाधाकाण्डक होता है । उससे द्वीन्द्रियकी आबाधाके विकल्पोंसे गुणा करनेसे जो प्रमाण आवे उसमेंसे एक १५ घटानेपर जो शेष रहे उसे उसकी मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरमें-से घटानेपर जो शेष रहे उतनी दो इन्द्रियके मिथ्यात्वकी जघन्यस्थिति होती है। उस जघन्य स्थितिको उत्कृष्टस्थितिमें घटाकर शेषमें एक अधिक करनेपर दो इन्द्रियके मिथ्यात्वकी सब स्थितिके भेदोंका प्रमाण होता है। त्रीन्द्रियके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधा तीन बार संख्यातसे भाजित आवली अधिक पचास अन्तर्मुहूर्त है। उससे मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति पचास सागर में २० भाग देनेपर आबाधाकाण्डकका प्रमाण होता है। उसे आबाधाके विकल्पोंसे गुणा करनेपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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