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________________ १४६ गो० कर्मकाण्डे स्थित्याबार्धयिदु । इल्लिगावलिगावळियं तोरि रूपासंख्येयभागमं गुणकारभूतान्तर्मुहूर्तद २१ संख्यातदोळ साधिकं माडिदोडिदु २१ । इदरिंदमेकेंद्रियजीवन तन्न मिथ्यात्वोत्कृष्टस्थितियेक सागरोपममदं संख्यातपल्यप्रमाणराशियं भागिसि प ११ वंद लब्धप्रमणामाबाधाकांडक. प्रमाणमक्कुमवनाबाधाविकल्पप्रमाणराशिर्शायदं २८ गुणिसिदोडिदु प १। २ ई आबाधाविकल्पंगळु ५ रूपाधिकावल्यसंख्यातकभागमे तादुर्देदोर्ड आदी २१ अन्ते २ सुद्धे २ वढिहिदे २ . स्व २४18. १ संजुदे ठाणा। २ एंदिन्तु रूपाधिकावल्यसंख्यातकभागं सिद्धमप्पुरिदं। मत्तमा स्थित्याबाधा विकल्पंगळिदं गुणिसल्पट्ट स्थित्याबाधाकांडकराशियोळेकरूपं कळेदोडिदु प ११२ अपत्तित २१० आबाधाविकल्पैर्गुणितेन एकरूपोनेन ऊना उत्कृष्टस्थितिः जघन्यस्थितिर्भवति । तथाहि एकेन्द्रियस्य मिथ्यात्वोत्कृष्टाबाधेयं २ आवलेरावलि प्रदय रूपासंख्येयभागेन संख्यातगणकारं साधिक १० २१ कृत्वा अनेन तस्यैकसागरमिथ्यात्वोत्कृष्टस्थितिः संख्यातपल्यमात्री भक्ता सती प११ आबाधाकाण्डक १भवति । तच्च तस्याबाधाविकल्पैः २ गणयित्वा ६१।२ अपवयं रूपेण ऊनयित्वा उत्कृष्ट स्थितावपनीतं तदा तस्य मिथ्यात्वजघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा, इमां स्थिति उत्कृष्टस्थितावपनीय शेषे -- 0 .- . प एकेन भक्त्वा प रूपाधिकीकृते १ बन्ध जानना। इसका विवरण इस प्रकार है-एकेन्द्रिय जीवके मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट आबाधा आवलीके असंख्यातवे भाग अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कही है। उसका भाग १५ मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति एक सागरमें देने पर जो प्रमाण आवे उतना आबाधाकाण्डकका प्रमाण है । इस आबाधाकाण्डकको एकेन्द्रियकी आबाधाके विकल्पोंसे गुणा करके जो प्रमाण आवे उसमेंसे एक कम करके जो प्रमाण रहे उसे उत्कृष्ट स्थितिमें घटानेपर एकेन्द्रिय जीवके मिथ्यात्वकी जघन्यस्थितिका प्रमाण होता है। इस जघन्य स्थितिको उत्कृष्ट स्थितिमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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