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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ई जघन्योत्कृष्टाबाधगळ जघन्यमनुत्कृष्टदोळकळेदु आदियं २३ । अन्त २१ दोल कर्लदोडे २ वृद्धि एकरूपदिदं भागिसिदोड तावन्मात्रमेयक्कु । रूपं कूडिदोर्ड २ स्थानविकल्पंगळित द्वींद्रियादिगळ्गमरियल्पडुगुं द्वि ३ त्रिः च अस ३ सं इवाबाधाविकल्पंगळु । इवं ___१।४ १।३ १।२ २ ११ २११ । ४ मनदोळवधरिसिदंगे बळिक्कं जघन्यस्थितिबंधमं साधिसुव करणसूत्रमं पेळ्दपरु : जेहाबाहोवट्टियजेटं आवाहकंडयं तेण । आबाहवियप्पहदेणेगूणेणूण जेट्टमवरठिदी ॥१४७।। ज्येष्ठाबाधापतिता ज्येष्टा आबाधाकांडकं तेनाबाधाविकल्पहतेनैकोनेनोनज्येष्ठा अवरस्थितिः॥ इल्लि एकेंद्रियादि तंतम्मुत्कृष्टस्थित्याबायिदं तंतम्मुत्कृष्टस्थितियं भागिसि बोडेकभागप्रमाणमदु आबाधाकांडकप्रमाणमक्कुमदनाबाधाविकल्पंगळ प्रमाणदिदं गुणिसि लब्धराशियोळेकरूपं. १० कळेदुदनुत्कृष्टस्थितियोळकळेदोर्ड शेषं जघन्यस्थितियक्कुमदेते दोडेकेंद्रियोत्कृष्टमिथ्यात्वप्रकृति आबाधाविकल्पास्तु एकेन्द्रिये आदी २१ अन्ते २ सुधे २ वढि १ हिदे रूवसंजुदे २ ठाणा । एवं २१ त्रींद्रिय । चतुरिद्रिय | असं । संशि २ २ १२ १ । ४ । । । । ।। द्वीन्द्रियादावप्यानेतव्याः ॥१४६॥ अथैतत्सर्व मनसि धृत्वा जघन्यस्थितिबन्धसाधनकरणसूत्रमाह एकेन्द्रियादीनां स्वस्वोत्कृष्टाबाधया भक्तस्वस्वोत्कृष्टस्थितिः आबाधाकाण्डकप्रमाणं भवति तेन काण्डकेन मिलानेपर स्थानोंका प्रमाण होता है। सो यहाँ जघन्य आबाधा आदि है और उत्कृष्ट १५ आबाधा अन्त है । अन्तमें-से आदिको घटाकर उसमें एक-एक समयकी वृद्धि होनेसे एकका भाग देकर एक मिलानेपर विकल्प होते हैं। इसी तरह दो इन्द्रिय आदिमें भी आबाधाके विकल्प लाने चाहिए ॥१४६।। ये सब मनमें रखकर जघन्य स्थितिबन्धका साधक करण सूत्र कहते हैं एकेन्द्रियादिक जीवोंकी अपनी-अपनी उत्कृष्ट आबाधासे अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति- २० में भाग देनेपर जो लब्ध आवे वह आबाधा काण्डकका प्रमाण होता है। उस आबाधाकाण्डकको आबाधाके विकल्पोंसे गुणा करके जो प्रमाण आवे उसमेंसे एक कम करके अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिमें घटाने पर जो शेष रहे उतना अपना-अपना जघन्यस्थितिक-१९ www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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