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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मिथ्यात्वप्रकृतिगेकेंद्रियजीवनेकसागरोपमस्थितियं कटुत्तं विरलागळा जीव हुंडसंस्थानमुमसंप्राप्तसृपाटिकासंहननमुमरतिशोकषंढवेदतिर्यदिवगक भयद्विक तेजसद्विक औदारिकद्विक आतपद्विक नोचैर्गोत्र त्रसचतुष्क वर्णचतुष्क अगुरुलघुउपघातपरघातउच्छ्वास एकेंद्रियपंचेंद्रियस्थावरनिर्माण असद्गमन अस्थिरषट्कर्म ब ३९ प्रकृतिगळु विसियंगळ्गेनितुं स्थितियं कटुगुम दितनुपतित्रैराशिकमं माडि प्र सा ७० को २। फ सा १ । इसा २० को २। गळगे लब्धमेकेंद्रियजीवं ५ विसियंगल्गे कटुवुत्कृष्टस्थितिबंधप्रमाणमेकसागरोपमद्विसप्तमभागमक्कु- सा २ मी प्रकारदिवं शेष सात स्त्रीवेद मनुष्ययुगळंगळ । सा १५ को २। स्थितिगं। वामन कोलित विकलत्रय सूक्ष्मत्रयंगळ सा १८ को २ स्थितिगं। कुब्जार्द्धनाराचंगळ सा १६ को २ स्थितिगं। स्वातिनाराचंगळ सा १४ को २ स्थितिगं। न्यग्रोधवज्रनाराचंगळ सा १२ को २ स्थितिगं। समचतुरस्रवज्रऋषभनाराचहास्यरतिउच्चैगर्गोत्रपुरुषवेदस्थिरषट्क सद्गमनमेंब १३ प्रकतिगळ सा १० को २ १० स्थितिगमिन्तु तिर्यग्गतिसंबंधिबंधयोग्यप्रकृतिगळु ११७ । रोळगे वैक्रियिकषट्कमुं सुरनारकायुर्गोत्रत्रसचतुष्कवर्णचतुष्कागुरुलधूपघातपरघातोच्छ्वासकेन्द्रिय-पञ्चेन्द्रियस्थावरनिर्माणासद्गमना-स्थिरषट्कानां ३९ एकसागरोपमद्विसप्तभागो भवति सा २। पुनः अनेन संपातौराशिकक्रमेण शेषाणां सागरपञ्चदशकोटी
कोटिस्थितिसातस्त्रीवेदमनुष्ययुग्मानां सागराष्टादशकोटीकोटिस्थितिवामनकीलितविकलत्रयसूक्ष्म त्रयाणां सागरषोडशकोटीकोटिस्थितिकजार्धनाराचयोः सागरचतर्दशकोटीकोरिस्थितिस्वातिनाराचयो: सागरद्वादशकोटीकोटि- १५ स्थितिन्यग्रोधवचनाराचयोः सागरदशकोटीस्थितिसमचतरसववर्षभनाराचहास्यरत्यच्चैर्गोत्रपंवेदस्थिरषटका सद्गमनानां च उत्कृष्टस्थितिबन्धं एकेन्द्रियस्य साधयेत् । एकं पञ्चविंशतिं पश्चाशतं शतं सहस्रं सागरोपमाणि चतुरः फलराशीन् कृत्वा चालीसियादीनि पृथक् पृथक् इच्छाराशीन् कृत्वा प्रमाणराशि प्राक्तनमेव कृत्वा
नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, भय, जुगुप्सा, तेजस, कार्मण, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, आतप, उद्योत, नीचगोत्र, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, वणोदिचार, २० अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, एकेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रिय, स्थावर, निर्माण, अप्रशस्तविहायोगति, स्थिरादि छह इन ३० प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एकेन्दियके एक सार सात भागोंमें-से दो भाग प्रमाण होता है। इसी त्रैराशिकके क्रमसे शेष पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले सातवेदनीय, स्त्रीवेद, मनुष्यद्विक आदिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एकेन्द्रियके एक सागरके सत्तर भागोंमें-से पन्द्रह भाग प्रमाण होता है। अठारह कोड़ाकोड़ी २५ सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले वामन संस्थान, कीलितसंहनन, विकलत्रय, सूक्ष्मत्रिकका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध एकेन्द्रियके एक सागरके.सत्तर भागोंमें-से अठारह भाग प्रमाण होता है। सोलह कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले कुब्जक संस्थान, अर्धनाराचसंहननका एक सागरके सत्तर भागोंमें-से सोलह प्रमाण, चौदह कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्टस्थितिवाले स्वातिसंस्थान, नाराच संहननका एक सागरके सत्तर भागोंमें चौदह भाग ३० प्रमाण, बारह कोड़ाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले न्यग्रोधसंस्थान और बननाराच संहननका एक सागरके सत्तर भागोंमें-से बारह भाग प्रमाण, दस कोडाकोड़ी सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले समचतुरस्र संस्थान वर्षभ नाराच संहनन, हास्य, रति, उच्चगोत्र,
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