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गो० कर्मकाण्डे यदि एत्तलानु सप्ततेः सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमक्के एतावन्मानं यितु प्रमाणं स्थितिबंधमक्कुमप्पोडागळु तीसियादीणं तीसियादिगळ्गे किं भवति एनितु स्थितिबंधमकुं इति इहिंगेंदु संपाते अनुपातत्रैराशिकं माडल्पडुत्तिरलु तीसियासीदिगळामवल्लद शेषाणां शेषोत्तरप्रकृति. गळ्गेयु । १८ । १६ । १५ । १४ । १२ । १० कोटोकोटिसागरोपम स्थितिबंधमनु वक्कं यथायोग्यंगळ्ग एकविकलेषु एकेंद्रियविकलेंद्रियजीवंगळोळु उभयस्थितिः उत्कृष्टस्थितिबंधमु जघन्यस्थितिबंधमुमरियल्पडुवुवदेते दोडे सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमस्थितिबंधमनुळ्ळ मिथ्यात्वप्रकृतिगे एकेंद्रियजीवनोंदु सागरोपमस्थितियं कटुत्तं विरलागळा एकेंद्रियजीवं षोडशकषायचाळीसीय. गळ्गेनितुं स्थितियं कटुगुमें दिन्तनुपातत्रैराशिकं माडि प्र सा ७० को २१ प सा १ । इ । सा ४० । को २ । गे बंद लब्धमेकेंद्रियजीवं चाळीसियंगळगे कटुउ उत्कृष्टस्थितिबंधप्रमाणमेकसागरोपमचतुःसप्तमभागमकुं सा ४ मत्तमेप्पत्तु कोटीकोटिसागरोपमस्थितिबंधमनुकळ मिथ्यात्वप्रकृतिगे एकेंद्रियजीवनेकसागरोपमस्थितियं कटुत्तं विरलागळा जीवं । असात १ घाति १९ अन्तु विशतितीसिय प्रकृतिगळ्गेनितु स्थितियं कटुगुमें दिन्तु अनुपातत्रैराशिकमं माडि । प्र सा ७० को २। फ सा १। इसा ३० को २। लब्धमेकेंद्रियजीवं तीसियंगळगे कटुववुत्कृष्टस्थितिबंधप्रमाणमेकसागरोपमत्रिसप्तमभागमक्कु सा ३ मतमप्पत्त कोटीकोटिसागरोपम मुत्कृष्टस्थितिबंधमनुळ्ळ
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१५ सप्ततितीकोटिसागरोपमोत्कृष्टस्थितिकमिथ्यात्वस्य यद्येकसागरोपममात्रं बध्नाति तदा तीसियादीनां
किं भवति ? इति लब्धः एकेन्द्रियस्य उत्कृष्टस्थितिबन्धः चालीसियानां षोडशकषायाणां एकसागरोपमचतुःसप्तभागः सा ४ । अनेन त्रैराशिकक्रमेण तीसियानामसातवेदनीयकान्नविंशतिघातिनां एकसागरोपमत्रिसप्तभागः सा
३ । वीसियानां हुण्डासंप्राप्तसृपाटिकाऽरतिरतिशोकषंढवेदतिर्यद्विकभयद्विकतैजसद्विकोदारिकद्विकातपद्विकनीचे
सत्तर कोडाकोड़ी सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिवाले मिथ्यात्वका यदि एकेन्द्रिय जीव २० एक सागर प्रमाण बन्ध करता है तो जिन कर्मोंकी तीस कोड़ाकोड़ी सागर आदि प्रमाण
स्थिति है उनका वह कितना बन्ध करता है ऐसा त्रैराशिक करना चाहिए । सो प्रमाणराशि सत्तर कोडाकोडी सागर, फलराशि एक सागर, इच्छाराशि जिस कर्मकी ज्ञात करना हो उसकी स्थिति तीस, चालीस, बीस आदि कोड़ाकोड़ी सागर । यहाँ फलराशिको इच्छाराशि
से गुणा करके प्रमाणराशिसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतनी-उतनी उत्कृष्ट स्थिति उस २५ कर्मकी एकेन्द्रिय जीव बाँधता है। सो सोलह कषायोंकी उत्कृष्ट स्थिति चालीस कोडाकोड़ी
सागर है। इसको पूर्वोक्त प्रकार इच्छारांशि एक सागरसे गुणा करके उसमें प्रमाणराशि मिथ्यात्वकी उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागरसे भाग देनेपर लब्ध एक सागरके सात भागोंमें-से चार भाग प्रमाण स्थिति एकेन्द्रियके बँधती है। इसी प्रकार तीस कोड़ाकोड़ी
सागर उत्कृष्ट स्थितिवाले असातवेदनीय तथा धातिया कर्मोंकी उन्नीस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट ३० स्थितिबन्ध एकेन्द्रियके एक सागरके सात भागोंमें-से तीन भाग होता है। बीस कोडाकोड़ी
सागरकी उत्कृष्ट स्थितिवाले हुण्डसंस्थान, असंप्राप्तमृपाटिकासंहनन, अरति, रति, शोक,
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