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________________ गो० कर्मकाण्डे पचयं ४ । व्येकपद १६ । अर्द्ध १५ घनचय १५ ४ । गुणो गच्छ १५ ४।१६ । उत्तरधनं २२ ४८० । चय धनहीनं द्रव्यं २५९२ । पदभजिदे । प्र १६ फ २५९२। इ१। लब्ध मादि धनं भवति अङ्कसंदृष्टी स्थितिबन्धाध्यवसायस्थानानि द्वासप्तत्यधिकत्रिसहस्री ३०७२ स्थितिविकल्पाः षोडश १६ पदकृत्त्या २५६ संख्यातेन च ३ सर्वधने भक्त ३०७२ चयो भवति ४। व्येकपदार्थ १५ घनचयः १५ । ४ २५६ । ३ गुणो गच्छः १५ । ४ । १६ । ४८० चयधनं भवति । अनेन सर्वधनं ३०७२ ऊनयित्वा २५९२ पदेन १६ भक्तं सत जघन्यस्थितिकारणपरिणामसंख्या भवति १६२ । अत्रकचये ४ वद्ध सति एकैकसमयाधिकद्वितीयादिस्थितिकारणपरिणामप्रमाणानि भवन्ति । पुनः अनुकृष्टिपदेन ४ ऊर्ध्वचये ४ भक्त तिर्यकुचयो भवति १ । व्येकपदार्थ ३ घ्नचयः ३ । १ गणो गच्छः ३ । १। ४ चयधनं ६ भवति । अनेन जघन्यस्थितिकारणपरिणाम प्रमाणं १६२ हीनं कृत्वा अनुकृष्टिगच्छेन भक्तं सत प्रथमखण्डप्रमाणं स्यात् ३९ । अत्रैकैकतिर्यकच १० द्वितीयादिखण्डानि स्मुः ४० । ४१ । ४२ । एवं शेषद्वितीयादिचरमपर्यन्तस्थितिपरिणामा अपि तिर्यग्रच जैसे जीवकाण्ड में गुणस्थानोंका कथन करते हुए सातिशय अप्रमत्तके अधःप्रवृत्तकरणका स्वरूप कहा है वैसे ही यहाँ अंकसंदृष्टि के कथन द्वारा जानना । जैसे वहाँ अंकसंदृष्टि में सर्वधनका प्रमाण तीन हजार बहत्तर ३०७२ है वैसे ही यहाँ सर्व स्थितिबन्धाध्य वसाय स्थानोंका प्रमाण ३०७२ जानना । जैसे वहाँ ऊर्ध्वगच्छका प्रमाण सोलह कहा, वैसे १५ ही यहाँ विवक्षित कर्मकी जघन्य स्थितिसे लेकर एक-एक समय अधिक उत्कृष्ट स्थिति पर्यन्त जितने स्थितिके भेद हों उतना ऊर्ध्वगच्छ जानना । जैसे गच्छ १६ का वर्ग दो सौ छप्पन और संख्यात तीनका भाग सर्वधन ३०७२ में देनेपर चार पाये सोचयका प्रमाण चार है, वैसे ही यहाँ जो ऊर्ध्वगच्छका प्रमाण कहा, उसका वर्ग करके संख्यातसे गुणा करें और उसका भाग सर्वधनमें देनेपर जो प्रमाण आवे उतना चय जानना। ऊव रचनामें इतनी२० इतनी वृद्धि जानना । जैसे एक कम गच्छ पन्द्रहका आधा करके उसे चयके प्रमाण चारसे गुणा करनेपर तीस होता है। उसे गच्छ सोलहसे गुणा करनेपर चार सौ अस्सी होता है। वही चय धनका प्रमाण है । उसे सर्वधन तीन हजार बहत्तर में-से घटानेपर दो हजार पाँच सौ बानबे २५९२ शेष रहे। उसे गच्छ सोलहसे भाग देनेपर एक सौ बासठ पाये, सो प्रथम स्थान जानना । उसी प्रकार यहाँ जो गच्छका प्रमाण कहा उसमें एक कम करके तथा उसका २५ आधा करके उसे चयसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उसे गच्छसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना चयधन जानना। इस चयधनको सर्वधनमें-से घटाकर जो प्रमाण रहे उसमें गच्छके प्रमाणसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे उतने अध्यवसाय स्थान जघन्य स्थितिबन्धके कारण हैं। तथा जैसे आदि स्थान एक सौ बासठमें एक चय चार मिलानेपर दूसरा स्थान एक सौ छियासठ होता है, वैसे ही यहाँ जघन्य स्थितिबन्धके कारण अध्यवसाय स्थानोंका ३. जो प्रमाण कहा उसमें पूर्वोक्त चयका प्रमाण मिलानेपर जो प्रमाण हो उतने अध्यवसाय स्थान जघन्य स्थितिसे एक समय अधिक दूसरी स्थिति के बन्धके कारण होते हैं। उसमें एक चय मिलानेपर जघन्यसे दो समय अधिक तीसरी स्थितिके बन्धके कारण अध्यवसाय स्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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