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________________ १० १५ १०८ गो० कर्मकाण्डे तत् १ | आहारद्वयं २ वैक्रियिकषट्क ६ मन्तु १३ प्रकृतिगळकळे दुखप्पदरिवं :स्त्री = = निर्वृत्यपर्याप्त सा २४ ९४ १३ १३ | १०७ ७ ई रचने सुगममें वोडे स्त्रीवेदिनिवृत्य पर्य्याप्तका संयतं घटिसने बिनिते विशेषमप्पुवरिवं ॥ बंढवेदिगगेयुं बंधयोग्यप्रकृतिगळ १२० गुणस्थानगळं स्त्रीवेदिगळोळपेवंते ९ अप्पबु । गमनिर्कयुमा प्रकारमेयक्कु मी षंढवेदिगळोळ, निवृत्यपर्याप्तकोरोल विशेषमंटवाउवे बोर्ड योग्य५ प्रकृतिगळु नरेंदु १०८ । गुणस्थानंगळ अध्वु । पं. निर्वृत्य० ९ ७१ ३७ २४ ९४ १४ १३ १०७ १ तोर्थ ईरच सुगम तें दोडे नरकगतिय असंयतनोळ् तोत्थंबंधमुंटे बिनिते विशेषमप्पुर्वारंवं । षंढवेदिलब्ध्यपर्याप्तकमिथ्यादृष्टिगे बंधयोग्यप्रकृतिगळु १०९ तीर्थमं कळेवु तिर्य्यग्मनुष्यायुर्द्वयमं पर्याप्तानां बन्धयोग्यं १०७ । कुतः ? मायुश्चतुष्कतीर्थाहारद्वय वै क्रियिकषट्कानामबन्धात् । संदृष्टि : : स्त्री पर्याप्त १०७ ९४ १३ मि १३ १०७ ० सा २४ अत्र संयतो न संभवति । षंढवेदिनां बन्धयोग्यम् १२० । गुणस्थानानि गमनिका च स्त्रीवेदिवत् । तन्निर्वृत्यपर्याप्ते तु बन्धयोग्य मष्टोत्तरशतम् । १०८ । तल्लब्ध्यपर्याप्त कबन्धात्तिर्यग्मनुष्यायुषी अपनीय नारकासंयतापेक्षया तीर्थबन्धस्यात्र क्षेपात् गुणस्थानानि ३ । संदृष्टि: अ Jain Education International सा ९ २४ पर्याप्त 01 ७१ अ सा ३७ ४९ / १४ मि १३ १०७ १ तीर्थ बाई और अबन्ध अठानबे का होता है । तथा चरम समय में व्युच्छिति शून्य, बन्ध इक्कीस और अबन्ध निन्यानबे का होता है । नपुंसक वेदियोंके बन्धयोग्य एक सौ बीस हैं । गुणस्थान तथा रचना स्त्रीवेदीकी तरह जानना । नपुंसकवेदी निर्वृत्यपर्याप्त में बन्धयोग्य एक सौ आठ हैं। क्योंकि लब्ध्यपर्याप्त के बन्धयोग्य एक सौ नौ प्रकृतियों में से तिर्यञ्चायु मनुष्यायु घटाकर तीर्थंकरको मिलानेसे एक सौ आठ होती हैं क्योंकि नरक में चतुर्थगुणस्थान में तीर्थंकरका बन्ध होता है । गुणस्थान तीन For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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