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________________ गो० कर्मकाण्डे पथ्र्या घमें वंशे मेघे म अपअ ९ । ७१२८ प्ति मि २८ | ९८ १ _व्युच्छि बंध अबंध इल्लि मिथ्यात्वमं हुंडप्संस्थानमं पंढवेदमुमसंप्राप्त सृपाटिकासंहननमेंब नाल्कुं प्रकृतिगळ मिथ्यादृष्टियोळु व्युच्छित्तिगळप्पुवु । बंधप्रकृतिगळु १०० अबंधप्रकृति तीर्थमो देयकुं। सासादनंग बंधव्युच्छित्तिगळं मुन्नं गुणस्थानदोळु पेन्द पंचविंशतिप्रकृतिगळेयप्पुवु । बंधप्रकृतिगळु मिथ्यादृष्टिय व्युच्छित्तिगळु नाल्कनातन बंधप्रकृतिगळो कळेदुळिद ९६ प्रकृतिगळु सासादनंगे बंधप्रकृतिगळप्पुवु। अबंधप्रकृतिगळं मियादृष्टिय बंधव्युच्छित्तिगळ नाल्कुमबंधप्रकृति तीमितैकुं प्रकृतिगळु सासादनंगे अबंधप्रकृतिगळप्पुवु। मिश्रंगे व्युच्छित्तिशून्य मक्कुं। बंधप्रकृतिगळ । सासादनन बंधव्युच्छित्तिगळु २५ मनातन बंधप्रकृतिगळोळ कळे दुळिद ७१ प्रकृतिगळोळगे मिश्रगायुबंधमिल्लप्पुरिदमल्लिई मनुष्यायुष्यम तेगदोडे बंधप्रकृतिगळ, ७० तप्पुवु । अबंधप्रकृतिगळ मा कळेद मनुष्यायुष्यमुं १ । सासादनन बंधव्युच्छित्ति २५ मबंधप्रकृतिगळु ५ मिन्तु ३१ प्रकृतिगळ मिश्रंगे अबंधप्रकृतिगळप्पुवु । असंयतसम्यग्दृष्टिगे बंधव्युच्छित्तिगळ १० बंधप्रकृतिगळु मिश्रन बंधप्रकृतिगळोळगे तीर्थमुमं मनुष्यायुष्यमुमं कूडिदोडे ७२ प्रकृतिगलु असंयतंगे बंधप्रकृतिगळप्पुवु । अबंधप्रकृतिगळं मिश्रन अबंधंगळ ३१ रोळगे तीर्थमुमं मनुष्यायुष्यमुमं तेगेदु बंधप्रकृतिगळोळ कूडिदवप्पुरिदमु आ येरडं प्रकृतिगळं कळे दोडे असंयतंगे अबंधप्रकृतिगळ २९ अप्पुवु । घर्मेय अपर्याप्तनारकरुगळ्गे। मिथ्यादृष्टिगे सासादनतिर्यगायुज्जितबंधव्युच्छित्तिगळ २४ मं तन्न नाल्कुं बंधव्यच्छितिगळं कूडिदोडे बंधव्युच्छित्तिगळ २८ प्युवेदोडे नरकगतियोळेल्लियुमप्पपर्याप्तकालदोळ सासादनरिल्लप्पुरिदं । असंयतसम्यग्दृष्टिगे मनुष्यायुजितंएकोत्तरशते मिथ्यादृष्टी अबन्धः तीर्थकरत्वं, बन्धः शतं, व्युच्छित्तिः तदेवाद्यचतुष्कम् । सासादने अबन्धः पञ्च, बन्धः षण्णवतिः, व्युच्छित्तिः प्रागुक्तव पञ्चविंशतिः । मिश्रे बन्धः मनुष्यायुर्नेति सप्ततिः, अबन्धः एकत्रिंशत्, व्युच्छित्तिः शून्यम् । असंयते बन्धः मनुष्यायुस्तीर्थकरत्वाभ्यां द्वासप्ततिः, अबन्धः एकान्नविंशत्, व्युच्छित्तिर्दश । नारकापर्याप्तानां सासादनत्वं नेति धर्मायां मिथ्यादृष्टी व्युच्छित्तिः तिर्यगायूरहितसासादनएक तिर्यगायुका बन्ध करता है' इस सूत्रके अभिप्रायसे घर्मा आदि तीनमें पर्याप्तके एकसौ एक बन्धयोग्य हैं। मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें तीर्थकरका अबन्ध है, बन्ध सौका, व्युच्छित्ति आदिकी चार प्रकृतियों की । सासादनमें अबन्ध पाँच, बन्ध छियानबे, व्युच्छित्ति पूर्वोक्त पच्चीस । मिश्रमें मनुष्यायुका बन्ध न होनेसे बन्ध सत्तर, अबन्ध इकतीस, व्युच्छित्ति शून्य । असंयतमें तीर्थकर और मनुष्यायुका बन्ध होनेसे बन्ध बहत्तर, अबन्ध उनतीस, व्युच्छित्ति दस । २५ नरकमें अपर्याप्तावस्थामें सासादन गुणस्थान नहीं होता। अतः धर्मामें मिथ्यादृष्टिमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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